आज की पहेली में आपको हिन्दुस्तान के उस इतिहास पुरूष को पहचानना है जिसने राजनीति की रपटीली राहों पर फिसलते संभलते हुऐ इसके शिखर को छुआ (संकेत-1) और इस शिखर से त्यागपत्र देते हुये बाल्मिीकि रामायण की वह पंक्ति पढी थी जो उनके बाबा श्यामलाल जी ने (संकेत-2) बचपन में याद कराई थी।
'न भीतो मरणादस्मि केवलं दूषितो यशः’ अर्थात मैं मृत्यु से नहीं केवल अपयश से डरता हूं।
इस महान विभूति ने अपने इकसठवें जन्मदिवस के अवसर पर यह कविता भी लिखी थी (संकेत-3):-
नए मील का पत्थर
नए मील का पत्थर पार हुआ।
कितने पत्थर शेष न कोई जानता?
अन्तिम कौन पडाव नही पहचानता?
अक्षय सूरज , अखण्ड धरती,
केवल काया , जीती मरती,
इसलिये उम्र का बढना भी त्यौहार हुआ।
नए मील का पत्थर पार हुआ।
बचपन याद बहुत आता है,
यौवन रसघट भर लाता है,
बदला मौसम, ढलती छाया,
रिसती गागर , लुटती माया,
सब कुछ दांव लगाकर घाटे का व्यापार हुआ।
नए मील का पत्थर पार हुआ।
बीते कल भारत का यह इतिहास पुरूष अपने जीवन का एक और वर्ष-पडाव पार करते हुये जीवन की शतकीय यात्रा से मात्र 13 कदम दूर रह गया है। (संकेत-4)
और हां सामान्यतः अशुभ माना जाने वाल यह अंक 13 इस महान पुरूष के लिये भाग्य का सूचक रहा है। (संकेत-5)
अब इतने संकेत एक साथ पाने के बाद आप भी अवश्य ही इस महापुरूष को जन्मदिवस की बधाइयां अवश्य देना चाहते होंगे तो फिर देर किस बात की तुरंत अपनी शुभकानाऐं टाइप करें और टिप्पणी के रूप में भेज दें जो आपको इस पहेली का विजेता भी बना सकती हैं।
अब तो देर न कीजिये और अपना उत्तर तुरंत भेजिये । कहीं कोई और प्रतिभागी आपसे पहले उत्तर भेजकर इस पहेली का विजेता न बन जाय। शुभकामनाओं सहित।