प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,
हिन्दी साहित्य पहेली के माध्यम से साहित्य से जुडे विषयों पर उपयोगी जानकारी देने के लिये हमने इसमें कुछ बदलाव किये हैं । अपनी हर नयी पहेली में हम साहित्य से जुडी कोई न कोई विशेष तथ्यात्मक जानकारी आप तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं। हमारा उद्देश्य पहेली के साथ साथ आप तक उपयागी जानकारी पहुँचाना भी है। इसलिये यह आवश्यक नहीं है कि आप केवल उसी स्थिति में अपनी टिप्पणी भेजें जब आपको पहेली का हल मालूम हो , यदि आप पहेली में सुझाई गयी किसी नयी जानकारी को रोचक और ज्ञानवर्धक पाते हैं तो भी कृपया अपनी बहुमूल्य राय हमें अवश्य दें ।
जैसे इस बार हम आभारी हैं हिन्दी साहित्य पहेली 48 के उपविजेता आदरणीय डा0 दर्शन लाल जी बावेजा जी के जिन्होंने पहेली से संबंधित संम्पूर्ण वृतांत को अपनी टिप्पणी के रूप में हमारे साथ साझा किया। डा0 दर्शन लाल जी बावेजा जी द्वारा प्रस्तुत जानकारी इस प्रकार है
श्री दर्शन लाल बावेजा जी
महर्षि बाल्मीकि द्वारा रचित ग्रंथ ‘रामायण’ को संस्कृत साहित्य का प्रथम महाकाव्य कहा जाता है । यह महाकाव्य बालकांड, अयोध्याकांड, आदि (जैसा श्री तुलसीदासकृत ‘रामचरितमानस’ में है) में विभक्त है, और हर कांड सर्गों में बंटा है । ग्रंथ के आरंभ में, वस्तुतः सर्ग दो में, निम्नलिखित श्लोक का उल्लेख है:
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।। (रामायण, बालकाण्ड, द्वितीय सर्ग, श्लोक १५)
{निषाद, त्वम् शाश्वतीः समाः प्रतिष्ठां मा अगमः,
यत् (त्वम्) क्रौंच-मिथुनात् एकम् काम-मोहितम् अवधीः ।}
हे निषाद, तुम अनंत वर्षों तक प्रतिष्ठा प्राप्त न कर सको, क्योंकि तुमने क्रौंच पक्षियों के जोड़े में से कामभावना से ग्रस्त एक का वध कर डाला है ।
(क्रौंच कदाचित् चकवा या चकोर को कहा जाता है ।)
यह श्लोक महर्षि बाल्मीकि के मुख से एक बहेलिए के प्रति अनायास निकला शाप है कि वह कभी भी प्रतिष्ठा न पा सके ।
(मेरे पास उपलब्ध गीताप्रेस, गोरखपुर, की प्रति में प्रतिष्ठा का हिंदी में अर्थ शांति किया गया है ।)
रामायण ग्रंथ के पहले सर्ग में इस बात का उल्लेख है कि देवर्षि नारद महर्षि बाल्मीकि के तमसा नदी तट पर अवस्थित आश्रम पर पधारते हैं और उन्हें रामकथा का संक्षिप्त परिचय देते हैं । देवर्षि के चले जाने के बाद महर्षि अपने शिष्यों के साथ तमसा नदी तट पर स्नानार्थ जाते हैं । तभी वे अपने वस्त्रादि अपने प्रिय शिष्य भरद्वाज को सौंप पेड़-पौधों से हरे-भरे निकट के वन में भ्रमणार्थ चले जाते हैं । उस वन में एक स्थान पर उन की दृष्टि क्रौंच पक्षियों के रतिक्रिया में लिप्त एक असावधान जोड़े पर पड़ती है । कुछ ही क्षणों के बाद वे देखते हैं कि उस जोड़े का एक सदस्य चीखते और पंख फड़फड़ाते हुए जमींन पर गिर पड़ता है । और दूसरा उसके शोक में चित्कार मचाते हुए एक शाखा से दूसरे पर भटकने लगता है । उस समय अनायास ही उक्त निंदात्मक वचन उनके मुख से निकल पड़ते हैं ।
महर्षि के मुख से निकले उक्त छंदबद्ध वचन उनके किसी प्रयास के परिणाम नहीं थे । घटना के बाद महर्षि इस विचार में खो गये कि उनके मुख से वे शब्द क्यों निकले होंगे । वे सोचने लगे कि क्यों उनके मुख से बहेलिए के प्रति शाप-वचन निकले । इसी प्रकार के विचारों में खोकर वे नदी तट पर लौट आये । घटना का वर्णन उन्होंने अपने शिष्य भरद्वाज के समक्ष किया और उसे बताया कि उनके मुख से अनायास एक छंद-निबद्ध वाक्य निकला जो आठ-आठ अक्षरों के चार चरणों, कुल बत्तीस अक्षरों, से बना है । इस छंद को उन्होंने ‘श्लोक’ नाम दिया । वे बोले
“श्लोक नामक यह छंद काव्य-रचना का आधार बनना चाहिए; यह यूं ही मेरे मुख से नहीं निकले हैं ।”
पर कौन-सी रचना श्लोकबद्ध होवे यह वे निश्चित कर पा रहे थे । आगे की कथा यह है कि तमसा नदी पर स्नानादि कर्म संपन्न करने के पश्चात् महर्षि आश्रम लौट आये और आसनस्थ होकर विभिन्न विचारों में खो गये । तभी सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने उन्हें दर्शन दिये और देवर्षि नारद द्वारा उन्हें सुनाये गये रामकथा का स्मरण कराया । उन्होंने महर्षि को प्रेरित किया कि वे पुरुषोत्तम राम की कथा को काव्यबद्ध करें । रामायण के इन दो श्लोकों में इस प्रेरणा का उल्लेख हैः
(आभार डा0 दर्शन लाल जी बावेजा )
आपकी टिप्पणियाँ हमारा उत्साहवर्धन तो करती ही हैं साथ ही आगे आने वाली पहेली की विषयवस्तु और शैली का भी निर्धारण भी करती हैं। इसलिये कृपया अपनी बहुमूल्य राय देना न भूलें।
इसके अतिरिक्त हमने इस ब्लाग में विजेताओं के लिये एक नया पृष्ठ भी जोडा है जिसमें शामिल किये जाने वाली सामग्री और इसके स्वरूप के संबंध में आप सुधी पाठकजनों की राय अत्यंत आवश्यक ही नहीं अपरिहार्य भी हैं।
बुधवार, 28 सितंबर 2011
मंगलवार, 27 सितंबर 2011
हिंदी साहित्य पहेली 48 का परिणाम और विजेता है श्री सवाई सिंह राजपुरोहित जी तथा उपविजेता श्री दर्शन लाल बावेजा जी
सोमवार, 26 सितंबर 2011
हिन्दी साहित्य पहेली 48 काव्य -रचना का आधार
प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,
आप की पहेली जानने से पहले आपसे एक रोचक वृतांत की चर्चा करते हैं। किसी जंगल में एक सिद्ध महर्षि ऋषि रहते थे । उसी जंगल मे एक निषाद भी रहता था जिसका व्यवसाय था पशु पक्षियों का आखेट करना। एक दिन जब वह निषाद शिकार पर निकला तो उसने कूज पक्षियों के एक जोडे को देखा। यह जोडा काम क्रीडा में इतनी तन्मयता से मगन था कि वह निषाद के रूप में अपने पास आने वाले खतरे को भाँप न सका। निषाद ने अपने धनुष पर तीर से निशाना साधकर उस तन्मय क्रूज पक्षी जोडे को घायल कर डाला। उसी समय संयोगवश वहाँ वे ऋषि महोदय भी आ पहुँचे और घायल पक्षी को देखकर द्रवित हो उठे। यह जानने पर कि उस निषाद द्वारा काम क्रीडा में लिप्त पक्षी को घायल किया गया है उन्होंने निषाद को शाप दे दिया और शाप स्वरूप उनके मुहँ से अनायाय ही ये शब्द निकल पडेः-
मा निषाद प्रतिष्ठामं त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत क्रौंचमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्
कालान्तर में उस महर्षि ने अपने शिष्य ऋषि भारद्वाज से इस घटना का उल्लेख किया और अनायास फूट पडी इन पंक्तियों को उद्घृत करते हुये यह कहा किः-
अब से इस प्रकार आठ-आठ अक्षरों वाले चार चरणों से बने इस छंद को ही श्लोक कहा जायेगा और यही काव्य -रचना का आधार होगा।
मंगलवार, 20 सितंबर 2011
आदरणीय श्रीलाल जी शुक्ल को वर्ष 2009 का भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया है
हमारी पिछली हिन्दी साहित्य पहेली 47 जिस महान हस्ती पर आधारित थी उन आदरणीय श्रीलाल जी शुक्ल को वर्ष 2009 का भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया है जो २० सितम्बर २०११ को घोषित हुआ है
हिन्दी साहित्य पहेली परिवार और इसके सुधी पाठकों की ओर से उन्हें इस महानतम उपलब्धि पर हार्दिक बधाईयाँ
हिन्दी साहित्य पहेली परिवार और इसके सुधी पाठकों की ओर से उन्हें इस महानतम उपलब्धि पर हार्दिक बधाईयाँ
हिंदी साहित्य पहेली 47 का परिणाम और विजेता है श्री दर्शन लाल बावेजा जी तथा उपविजेता श्रीश्याम सुन्दर जी
आज की पहेली में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को हार्दिक शुभकामनाये
सबसे पहले सही उत्तर भेज कर आज के प्रथम विजेता है श्री दर्शन लाल बावेजा जी
तथा प्रथम उपविजेता बने है श्री श्याम सुन्दर जी
और द्वितीय उपविजेता के पद पर विराजमान हुए हैं-श्री सवाई सिंह राजपुरोहित जी
आप सभी प्रतिभागियों को पुनः हार्दिक शुभकामनाये
सोमवार, 19 सितंबर 2011
हिन्दी साहित्य पहेली 47 श्री धर्मवीर भारती से पूछा जाने लगा कि आखिर इसका लेखक कौन है?-
प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,
आज की पहेली हिन्दी साहित्य की एक महान हस्ती पर आधारित है । सामने बना हुआ चित्र उस महान साहित्यकार के द्वारा लिखित एक उपन्यास का मुखपृष्ठ है। यह अपराधिक पृष्ठभूमि पर लिखा एक उपन्यास है जो इस धारणा का खंडन करता है कि अपराध कथाऐं साहित्यिक नहीं हो सकती। इस चित्र में से प्रकाशक का नाम तो यथावत है परन्तु लेखक का नाम और उपन्यास के शीर्षक को हटा दिया गया है जिसे आपको पहचानना है।
आपकी सहायता के लिये पहला संकेत है कि हिन्दी साहित्य की इस महान हस्ती का जन्म लखनऊ जिले के एक कस्बे अतरौली में हुआ। वह कस्बा भौगोलिक रूप से तो जनपद लखनऊ का हिस्सा था परन्तु वास्तव में जनपद सीतापुर और हरदोई की सांझी संस्कृति के कस्बे के रूप में जाना जाता रहा है। इसी कस्बे में पुश्तैनी तौर पर छोटे खेतिहरों के परिवार में इस महान हिंदी लेखक का जन्म हुआ था। इनके पितामह संस्कृत उर्दू और फारसी के ज्ञानी थे तथ पास के ही विद्यालय में अध्यापकी करते थे। कुछ समय बाद नौकरी से इस्तीफा देकर एक किसान भर रह गये थे। इनके पिता संगीत के शौकीन थे और पितामह द्वारा एकत्र की गयी खेेती से जीवन यापन करते हुये 1946 में स्वर्ग सिधार गये ।
आज की पहेली हिन्दी साहित्य की एक महान हस्ती पर आधारित है । सामने बना हुआ चित्र उस महान साहित्यकार के द्वारा लिखित एक उपन्यास का मुखपृष्ठ है। यह अपराधिक पृष्ठभूमि पर लिखा एक उपन्यास है जो इस धारणा का खंडन करता है कि अपराध कथाऐं साहित्यिक नहीं हो सकती। इस चित्र में से प्रकाशक का नाम तो यथावत है परन्तु लेखक का नाम और उपन्यास के शीर्षक को हटा दिया गया है जिसे आपको पहचानना है।
आपकी सहायता के लिये पहला संकेत है कि हिन्दी साहित्य की इस महान हस्ती का जन्म लखनऊ जिले के एक कस्बे अतरौली में हुआ। वह कस्बा भौगोलिक रूप से तो जनपद लखनऊ का हिस्सा था परन्तु वास्तव में जनपद सीतापुर और हरदोई की सांझी संस्कृति के कस्बे के रूप में जाना जाता रहा है। इसी कस्बे में पुश्तैनी तौर पर छोटे खेतिहरों के परिवार में इस महान हिंदी लेखक का जन्म हुआ था। इनके पितामह संस्कृत उर्दू और फारसी के ज्ञानी थे तथ पास के ही विद्यालय में अध्यापकी करते थे। कुछ समय बाद नौकरी से इस्तीफा देकर एक किसान भर रह गये थे। इनके पिता संगीत के शौकीन थे और पितामह द्वारा एकत्र की गयी खेेती से जीवन यापन करते हुये 1946 में स्वर्ग सिधार गये ।
मंगलवार, 13 सितंबर 2011
हिन्दी साहित्य पहेली 46 का परिणाम और विजेता श्रीमती वन्दना गुप्ता जी
प्रिय चिट्ठाकारों,
पहेली संख्या-46 का सही उत्तर है -
मदर टेरेसा जैसी वेषभूसा वाली यह महान हस्ती है महादेवी वर्माजी
और सही उत्तर सर्वप्रथम भेजकर विजेता बनी हैं
श्रीमती वन्दना गुप्ता जी
और सही उत्तर सर्वप्रथम भेजकर विजेता बनी हैं
श्रीमती वन्दना गुप्ता जी
और प्रथम उपविजेता के पद पर विराजमान हुए हैं-
''श्री सवाई सिंह राजपुरोहित जी ''
और दिव्तीय उपविजेता के पद को सुशोभित किया है-
-
डॉ.दर्शन लाल बवेजा जी
और
और सुश्री साधना वैद जी
''सुश्री साधना वैद जी ''
श्रीमती वन्दना गुप्ता जी एवं आप सभी अन्य प्रतिभागियों को हिंदी साहित्य पहेली परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनायें
श्रीमती वन्दना गुप्ता जी एवं आप सभी अन्य प्रतिभागियों को हिंदी साहित्य पहेली परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनायें
सोमवार, 12 सितंबर 2011
हिन्दी साहित्य पहेली 46 ममता की छाँह बिखेरती विभूति
प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,
आज की पहेली में आपको साथ में बने चित्र में ममता की छाँह बिखेरती विभूति को पहचानना है ।
आपकी सहायता के लिये पहला संकेत हैः-
इस महान विभूति का विवाह उनके बाबा ने उनकी उम्र के नवाँ वर्ष पूरा होते होते ही कर दिया था। जब इनका विवाह हुआ तो वे विवाह का मतलब भी नहीं समझती थीं। उन्हीं के अनुसार
‘‘ ष्दादा ने पुण्य लाभ से विवाह रच दियाए पिता जी विरोध नहीं कर सके। बरात आयी तो बाहर भाग कर हम सबके बीच खड़े होकर बरात देखने लगे। व्रत रखने को कहा गया तो मिठाई वाले कमरे में बैठ कर खूब मिठाई खाई। रात को सोते समय नाइन ने गोद में लेकर फेरे दिलवाये होंगेए हमें कुछ ध्यान नहीं है। प्रातरू आँख खुली तो कपड़े में गाँठ लगी देखी तो उसे खोल कर भाग गए। ’’
सोमवार, 5 सितंबर 2011
पहेली संख्या-४५ का परिणाम और विजेता सुश्री साधना वैद जी
प्रिय चिट्ठाकारों,
पहेली संख्या-45 का सही उत्तर है -
लेखक " धर्मवीर भारती " उपन्यास " गुनाहों का देवता
और सही उत्तर सर्वप्रथम भेजकर विजेता बनी हैं
''सुश्री साधना वैद जी ''
और प्रथम उपविजेता के पद पर विराजमान हुए हैं
''ER .सत्यम शिवम् जी ''
और दिव्तीय उपविजेता के पद को सुशोभित किया है-
''श्री सवाई सिंह राजपुरोहित जी ने''
आप सभी को हिंदी साहित्य पहेली परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनायें
हिन्दी साहित्य पहेली 45 ‘ गम्भीर पत्रकारिता के मानक निर्धारक का पुण्य स्मरण
प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,
सृजन-धर्मिता से साहित्य का आसमान नाप लेने की तड़प रखने वाले उस महान साहित्यकार ने 4 सितम्बर 1997 को मुम्बई में आखिरी साँस ली थी परन्तु सृजन-शीलता की जिस पाठशाला को उन्होंने आरंभ किया था वह भौतिक संसार में उनकी अनुपस्थिति के बाद भी गतिमान है।
आज की साहित्य पहेली उसे श्रंद्धांजलि के रूप में प्रस्तुत है। यूँ तो इस सहित्यकार की सभी कृतियाँ अद्वितीय हैं परन्तु साथ में प्रकाशित चित्र उनकी सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्याय का मुखपृष्ठ है जिसमें कुछ बदलाव किये गये हैं आपको इस उपन्यास और उस साहित्यकार को पहचानना है।
आपकी सहायता के लिये कुछ संकेत लिख रहा हूँ
.... नहीं .......नहीं...... संकेत तो मुखपृष्ठ के चित्र में छिपा हुआ है, .......बस.......... बस.......... अब और संकेत नहीं.......
पहचानिये इस लेखक और इसकी उस रचना को जिसका चित्र दिया गया है।
जल्दी से अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।
शनिवार, 3 सितंबर 2011
पहेली संख्या -४४
प्रिय चिट्ठाकारों,
हिंदी की महिला साहित्यकारों ने हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है आज का प्रश्न हिंदी की महिला साहित्यकार पर ही आधारित है .हम आपको एक पद दे रहे हैं आपको बताना है कि ये पद किस महिला साहित्यकार द्वारा रचित है.
''निरमोही कैसो किया तरसावे!
पहिले झलक दिखाय कै हमकूँ,
अब क्यों वेगी न आवै .
कब लौं तडफत तेरी सजनी ,
वाको दरद न जावे.''
ये पद किसने रचा है इसके लिए हम आपके समक्ष निम्न विकल्प रख रहे हैं -१-सहजोबाई
२-मीराबाई
३-विष्णु कुँवरी
४-छत्र कुँवरी
शर्ते वही:
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