प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों
साहित्य पहेली संख्या 70 के महान लेखक का नाम है आदरणीय महाकवि सुमित्रानेदन पंत जी
पर्वतीय क्षेत्रों में खिलने वाल पुष्प बुरांस अनेक स्थानीय लोककथाओं को समेटे है महाकवि सुमित्रानेदन पंत ने भी श्रेत्रीय कुमाउनी भाषा में इस पुष्प पर कुछ पंक्तियों लिखी हैं जो मुझे ब्लाग बैरंग पर मिलीं इन्हे आपके साथ साझा कर रहा हूं
शब्दार्थः सारे जंगल में तेरे जैसा कोई नहीं रे कोई नहीं फूलों से कहा बुरांस जंगल जैसे जल जाता है । सल्ल है देवदार है पइंया है अयांर है (यह सब पेडों की विभिन्न किस्में है) सबके फाग में पीठ का भार है फिर तुझमें जवानी का फाग है।रगों में तेरे लौ है प्यार का खुमार है।
इस बार पुनः सबसे पहले सही उत्तर भेजकर विजेता के पद पर विराजमान हुये हैं श्री यशवंत माथुर जी
और थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर आज के प्रथम उप विजेता के पद पर विराजमान हुई हैं सुश्री साधना वैद जी
और थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर द्वितीय उपविजेता पद पर विराजमान हुये हैं श्री दर्शन लाल जी बावेजा जी
और बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर एक और अतिरिक्त उपविजेता के पद पर विराजमान हुए हैं-श्री सवाई सिंह राजपुरोहित जी
आप सभी को हिंदी साहित्य पहेली परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनायें और ढेरों बधाइयाँ।
मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012
सोमवार, 27 फ़रवरी 2012
हिन्दी साहित्य पहेली 70 इस प्रसिद्ध कवि को पहचानो
प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों
सामने प्रकाशित चित्र पर्वतीय क्षेत्रों में खिलने वाले पुष्प बुरांस का है । इस पुष्प बुरांस से जुडी अनेक अनेक स्थानीय लोककथाये पर्वतीय जनमानस में गूंजती रहती है यह एक चिकित्सिीय गुणों से भरपूर पुष्प (बुरांस medicinal plant) है
आज की पहेली में हिन्दी के एक महान प्रसिद्ध कवि के द्वारा क्षेत्रीय कुमांउनी भाषा में लिखी चार पंक्तियां प्रस्तुत है जिनमें प्रकृति के इस चितेरे इस कवि ने अपने काव्य की मूल विशेषता के अनुरूप ही आचरण किया है और पर्वतीय क्षेत्रों में पाये जाने वाले पुष्प बुरांस को संबोधित किया है
इन पंक्तियो के आधार पर ही आज आपको इस कवि को पहचानना है। पंक्तियां है
सार जंगल में तवी ज क्वे नहाँ रे क्वे नहाँ
फूलन छे के बुरूंशु जंगल जस जली जाँ
सल्ल छ दयार छ छ पई छ अंयार छ
सबनाक फागन में पुग्नक भार छ
पे त्वी में ज्वानिक फाग छ
रगन में तैयार ल्वै छ, प्यारक खुमार छ,
और इन पक्तियों का भावार्थ है
शब्दार्थः सारे जंगल में तेरे जैसा कोई नहीं रे कोई नहीं फूलों से कहा बुरांस जंगल जैसे जल जाता है । सल्ल है देवदार है पइंया है अयांर है (यह सब पेडों की विभिन्न किस्में है) सबके फाग में पीठ का भार है फिर तुझमें जवानी का फाग है।रगों में तेरे लौ है प्यार का खुमार है।
संकेत के रूप इस महाकवि के नीचे अंकित हस्ताक्षर प्रस्तुत हैं जो इस महाकवि ने अपने मित्र को लिखे एक पोस्ट कार्ड पर अंकित किये थे।
क्या आप पहचान गये हैं उस कवि को तो फिर अब देरी किस बात की जल्दी से जल्दी अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।
हार्दिक शुभकामनाओं सहित।
सामने प्रकाशित चित्र पर्वतीय क्षेत्रों में खिलने वाले पुष्प बुरांस का है । इस पुष्प बुरांस से जुडी अनेक अनेक स्थानीय लोककथाये पर्वतीय जनमानस में गूंजती रहती है यह एक चिकित्सिीय गुणों से भरपूर पुष्प (बुरांस medicinal plant) है
आज की पहेली में हिन्दी के एक महान प्रसिद्ध कवि के द्वारा क्षेत्रीय कुमांउनी भाषा में लिखी चार पंक्तियां प्रस्तुत है जिनमें प्रकृति के इस चितेरे इस कवि ने अपने काव्य की मूल विशेषता के अनुरूप ही आचरण किया है और पर्वतीय क्षेत्रों में पाये जाने वाले पुष्प बुरांस को संबोधित किया है
इन पंक्तियो के आधार पर ही आज आपको इस कवि को पहचानना है। पंक्तियां है
सार जंगल में तवी ज क्वे नहाँ रे क्वे नहाँ
फूलन छे के बुरूंशु जंगल जस जली जाँ
सल्ल छ दयार छ छ पई छ अंयार छ
सबनाक फागन में पुग्नक भार छ
पे त्वी में ज्वानिक फाग छ
रगन में तैयार ल्वै छ, प्यारक खुमार छ,
और इन पक्तियों का भावार्थ है
शब्दार्थः सारे जंगल में तेरे जैसा कोई नहीं रे कोई नहीं फूलों से कहा बुरांस जंगल जैसे जल जाता है । सल्ल है देवदार है पइंया है अयांर है (यह सब पेडों की विभिन्न किस्में है) सबके फाग में पीठ का भार है फिर तुझमें जवानी का फाग है।रगों में तेरे लौ है प्यार का खुमार है।
संकेत के रूप इस महाकवि के नीचे अंकित हस्ताक्षर प्रस्तुत हैं जो इस महाकवि ने अपने मित्र को लिखे एक पोस्ट कार्ड पर अंकित किये थे।
क्या आप पहचान गये हैं उस कवि को तो फिर अब देरी किस बात की जल्दी से जल्दी अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।
हार्दिक शुभकामनाओं सहित।
मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012
हिंदी साहित्य पहेली ६९ के विजेता श्री यशवंत माथुर जी
प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों
साहित्य पहेली संख्या 69 के महान लेखक का नाम है आदरणीय श्री धर्मवीर भारती जी
और अब परिणाम कि बारी ---साहित्य पहेली संख्या 69 के परिणामों में भी एक अजब का संयोग है कि इस बार पांच सही उत्तर प्राप्त हुए परन्तु एक लम्बे अरसे के बाद अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर सबसे पहले सही उत्तर भेजकर विजेता के पद पर विराजमान हुये हैं श्री यशवंत माथुर जी
और आज के प्रथम उपविजेता पद पर विराजमान हुई हैं सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी
और थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर द्वितीय उप विजेता के पद पर विराजमान हुई हैं सुश्री साधना वैद जी
और आज की साहित्य पहेली के एक और उपविजेता हैं श्री दर्शन लाल जी बावेजा जी
श्री यशवंत माथुर जी सुश्री ऋता शेखर‘मधु जी, सुश्री साधना वैद जी, और आदरणीय दर्शन लाल जी वावेजा, आप सभी को हिंदी साहित्य पहेली का विजेता तथा उपविजेता तथा द्वितीय उप विजेता तथा अतिरिक्त उप विजेता घोषित होने पर हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ढेरों बधाइयाँ।
साहित्य पहेली संख्या 69 के महान लेखक का नाम है आदरणीय श्री धर्मवीर भारती जी
और अब परिणाम कि बारी ---साहित्य पहेली संख्या 69 के परिणामों में भी एक अजब का संयोग है कि इस बार पांच सही उत्तर प्राप्त हुए परन्तु एक लम्बे अरसे के बाद अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर सबसे पहले सही उत्तर भेजकर विजेता के पद पर विराजमान हुये हैं श्री यशवंत माथुर जी
और आज के प्रथम उपविजेता पद पर विराजमान हुई हैं सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी
और थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर द्वितीय उप विजेता के पद पर विराजमान हुई हैं सुश्री साधना वैद जी
और आज की साहित्य पहेली के एक और उपविजेता हैं श्री दर्शन लाल जी बावेजा जी
श्री यशवंत माथुर जी सुश्री ऋता शेखर‘मधु जी, सुश्री साधना वैद जी, और आदरणीय दर्शन लाल जी वावेजा, आप सभी को हिंदी साहित्य पहेली का विजेता तथा उपविजेता तथा द्वितीय उप विजेता तथा अतिरिक्त उप विजेता घोषित होने पर हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ढेरों बधाइयाँ।
सोमवार, 20 फ़रवरी 2012
हिन्दी साहित्य पहेली ६९ प्रसिद्ध कवि को पहचानो
प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों
आज की हिन्दी साहित्य पहेली एक ऐसे व्यक्तित्व पर आधारित है जिसका नाम स्वयं में एक मिसाल है।
इस महान कवि ने सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु पर एक कविता लिखी थी जो इस प्रकार है
सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु पर कविता
दूर देश में किसी विदेशी गगन खंड के नीचे
सोये होगे तुम किरनों के तीरों की शैय्या पर
मानवता के तरुण रक्त से लिखा संदेशा पाकर
मृत्यु देवताओं ने होंगे प्राण तुम्हारे खींचे
प्राण तुम्हारे धूमकेतु से चीर गगन पट झीना
जिस दिन पहुंचे होंगे देवलोक की सीमाओं पर
अमर हो गई होगी आसन से मौत मूर्च्छिता होकर
और फट गया होगा ईश्वर के मरघट का सीना
और देवताओं ने ले कर ध्रुव तारों की टेक -
छिड़के होंगे तुम पर तरुनाई के खूनी फूल
खुद ईश्वर ने चीर अंगूठा अपनी सत्ता भूल
उठ कर स्वयं किया होगा विद्रोही का अभिषेक
किंतु स्वर्ग से असंतुष्ट तुम, यह स्वागत का शोर
धीमे-धीमे जबकि पड़ गया होगा बिलकुल शांत
और रह गया होगा जब वह स्वर्ग देश
खोल कफ़न ताका होगा तुमने भारत का भोर।
-(लेखक ?)
इस बार कोई संकेत नहीं इस कविता के आधार पर ही आपको इसके लेखक को पहचानना है
क्या आप पहचान गये हैं उस कवि को तो फिर अब देरी किस बात की जल्दी से जल्दी अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।
हार्दिक शुभकामनाओं सहित।
आज की हिन्दी साहित्य पहेली एक ऐसे व्यक्तित्व पर आधारित है जिसका नाम स्वयं में एक मिसाल है।
इस महान कवि ने सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु पर एक कविता लिखी थी जो इस प्रकार है
सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु पर कविता
दूर देश में किसी विदेशी गगन खंड के नीचे
सोये होगे तुम किरनों के तीरों की शैय्या पर
मानवता के तरुण रक्त से लिखा संदेशा पाकर
मृत्यु देवताओं ने होंगे प्राण तुम्हारे खींचे
प्राण तुम्हारे धूमकेतु से चीर गगन पट झीना
जिस दिन पहुंचे होंगे देवलोक की सीमाओं पर
अमर हो गई होगी आसन से मौत मूर्च्छिता होकर
और फट गया होगा ईश्वर के मरघट का सीना
और देवताओं ने ले कर ध्रुव तारों की टेक -
छिड़के होंगे तुम पर तरुनाई के खूनी फूल
खुद ईश्वर ने चीर अंगूठा अपनी सत्ता भूल
उठ कर स्वयं किया होगा विद्रोही का अभिषेक
किंतु स्वर्ग से असंतुष्ट तुम, यह स्वागत का शोर
धीमे-धीमे जबकि पड़ गया होगा बिलकुल शांत
और रह गया होगा जब वह स्वर्ग देश
खोल कफ़न ताका होगा तुमने भारत का भोर।
-(लेखक ?)
इस बार कोई संकेत नहीं इस कविता के आधार पर ही आपको इसके लेखक को पहचानना है
क्या आप पहचान गये हैं उस कवि को तो फिर अब देरी किस बात की जल्दी से जल्दी अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।
हार्दिक शुभकामनाओं सहित।
मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012
हिन्दी साहित्य पहेली ६८ परिणाम विजेता हैं सुश्री साधना वैद्य जी
प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों
आज की पहेली का उत्तर है
मिर्ज़ा ग़ालिब
और अब आते हैं परिणाम पर
इस बार सर्वप्रथम सही उत्तर देकर विजेता बनी हैं सुश्री साधना वैद्य जी
और आज के उपविजेता हैं श्री दर्शन लाल जी बावेजा जी
जिन्होंने मिर्जा गालिब की मजार पर लिखी पंक्तियों वाली पूरी गजल हमारे साथ साझा की है जो इस प्रकार है।
आप दोनो विजेता और उपविजेता को हार्दिक बधाइयों के साथ श्री दर्शन लाल जी बावेजा जी का आभार कि उन्होंने इस पूरी गजल को हिन्दी साहित्य पहेली के पाठकों के लिये मुहैया कराया।
सुश्री साधना वैद्य जी श्री दर्शन लाल जी बावेजा जी को हार्दिक बधाई
आज की पहेली का उत्तर है
मिर्ज़ा ग़ालिब
और अब आते हैं परिणाम पर
इस बार सर्वप्रथम सही उत्तर देकर विजेता बनी हैं सुश्री साधना वैद्य जी
और आज के उपविजेता हैं श्री दर्शन लाल जी बावेजा जी
जिन्होंने मिर्जा गालिब की मजार पर लिखी पंक्तियों वाली पूरी गजल हमारे साथ साझा की है जो इस प्रकार है।
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक,
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक?
आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक?
हमने माना के तगाफुल ना करोगे,
लेकिन ख़ाक हो जायेगे हम तुमको ख़बर होने तक
ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किससे हो जुज़ मर्ग इलाज़
शम्मा हर रंगे में जलती है सहर होने तकमिर्ज़ा ग़ालिब
आप दोनो विजेता और उपविजेता को हार्दिक बधाइयों के साथ श्री दर्शन लाल जी बावेजा जी का आभार कि उन्होंने इस पूरी गजल को हिन्दी साहित्य पहेली के पाठकों के लिये मुहैया कराया।
सुश्री साधना वैद्य जी श्री दर्शन लाल जी बावेजा जी को हार्दिक बधाई
सोमवार, 13 फ़रवरी 2012
हिन्दी साहित्य पहेली 68
प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों
आज की पहेली एक ऐसे व्यक्तित्व पर आधारित है जिसका नाम स्वयं में एक मिसाल है।
सामने सुश्री नुसरत नाहीद द्वारा लिखी गयी एक पुस्तक का पृष्ठ भाग प्रदर्शित है यह पुस्तक मलिक प्रकाशन लखनऊ द्वारा प्रकाशित है और उस महान व्यक्तित्व पर आधारित है।
पहेली के संकेत के रूप में यह अवगत कराना है इस पुस्तक पर प्रकाशित चित्र इस महान व्यक्तित्व की समाधि या मजार है और लिखा हुआ शेर उस के जीवन का फलसफा ।
बस अब और संकेत नहीं आपको इस शेर के आधार पर ही इस व्यक्तित्व को पहचानना है वही इस पुस्तक का शीर्षक भी है ।
तो अब देर किस बात की जल्दी से अपना उत्तर मेल करें ताकि आपसे पहले कोई सही उत्तर देकर इस पहेली का विजेता न बन जाय।
आज की पहेली एक ऐसे व्यक्तित्व पर आधारित है जिसका नाम स्वयं में एक मिसाल है।
सामने सुश्री नुसरत नाहीद द्वारा लिखी गयी एक पुस्तक का पृष्ठ भाग प्रदर्शित है यह पुस्तक मलिक प्रकाशन लखनऊ द्वारा प्रकाशित है और उस महान व्यक्तित्व पर आधारित है।
पहेली के संकेत के रूप में यह अवगत कराना है इस पुस्तक पर प्रकाशित चित्र इस महान व्यक्तित्व की समाधि या मजार है और लिखा हुआ शेर उस के जीवन का फलसफा ।
बस अब और संकेत नहीं आपको इस शेर के आधार पर ही इस व्यक्तित्व को पहचानना है वही इस पुस्तक का शीर्षक भी है ।
तो अब देर किस बात की जल्दी से अपना उत्तर मेल करें ताकि आपसे पहले कोई सही उत्तर देकर इस पहेली का विजेता न बन जाय।
मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012
हिन्दी साहित्य पहेली 67 परिणाम विजेता हैं सुश्री साधना वैद्य जी
प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों
आज की पहेली का उत्तर है
पहली रचना ' हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिये' के रचनाकार हैं दुष्यंत कुमार !
और दूसरी रचना, 'है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिये' के रचनाकार का नाम है श्री गोपालदास नीरज !
और अब आते हैं परिणाम पर
इस बार सर्वप्रथम सही उत्तर देकर विजेता बनी हैं सुश्री साधना वैद्य जी
और आज के प्रथम उपविजेता पद पर विराजमान हुए हैं आदरणीय दर्शन लाल जी बावेजा
और आधा सही उत्तर देकर जो इस पहेली के दूसरे उप विजेता हैं आदरणीय डा0 रूपचंद शास्त्री ‘मयंक’जी
सुश्री साधना वैद्य जी , श्री दर्शन लाल बावेजा जी तथा डा0 रूपचंद शास्त्री ‘मयंक’जी
आप सभी को हिंदी साहित्य पहेली परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनायें और ढेरों बधाइयाँ।
आज की पहेली का उत्तर है
पहली रचना ' हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिये' के रचनाकार हैं दुष्यंत कुमार !
और दूसरी रचना, 'है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिये' के रचनाकार का नाम है श्री गोपालदास नीरज !
और अब आते हैं परिणाम पर
इस बार सर्वप्रथम सही उत्तर देकर विजेता बनी हैं सुश्री साधना वैद्य जी
और आज के प्रथम उपविजेता पद पर विराजमान हुए हैं आदरणीय दर्शन लाल जी बावेजा
और आधा सही उत्तर देकर जो इस पहेली के दूसरे उप विजेता हैं आदरणीय डा0 रूपचंद शास्त्री ‘मयंक’जी
सुश्री साधना वैद्य जी , श्री दर्शन लाल बावेजा जी तथा डा0 रूपचंद शास्त्री ‘मयंक’जी
आप सभी को हिंदी साहित्य पहेली परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनायें और ढेरों बधाइयाँ।
सोमवार, 6 फ़रवरी 2012
हिन्दी साहित्य पहेली 67 इस प्रसिद्ध कवि को पहचानो
प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों
आज की हिन्दी साहित्य पहेली में आपके सम्मुख हिन्दी साहित्य के दो प्रसिद्ध कवियों की एक जैसी भाव भंगिमा और एक समान लय में लिखी गयी कवितायें प्रस्तुत हैं। आपको इन कविताओं के माध्यम से उनके लेखकों को पहचानना है।
पहली कविता इस प्रकार है
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए
और दूसरी कविता यह है
है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिए
जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए
रोज़ जो चेहरे बदलते है लिबासों की तरह
अब जनाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहिए
अब भी कुछ लोगो ने बेची है न अपनी आत्मा
ये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिए
फूल बन कर जो जिया वो यहाँ मसला गया
जीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए
छिनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो
आँख से आँसू नहीं शोला निकलना चाहिए
दिल जवां, सपने जवाँ, मौसम जवाँ, शब् भी जवाँ
तुझको मुझसे इस समय सूने में मिलना चाहिए
पहले संकेत के रूप में यह अवगत कराना चाहेगें कि इनमें से एक कविता को इस प्रसिद्ध कवि की हस्ताक्षर कविता माना जाता है।
दूसरे संकेत के रूप में बताना चाहेंगे कि इन दोनो प्रसिद्ध कवियों में एक को ईश्वर ने बहुत छोटा जीवन दिया था और वे हमारे बीच से 1977 में ही चले गये थे और दूसरे कवि आयु शतक की ओर अग्रसर हैं। उनके शतायु होने की शुभाकांक्षा के साथ आपको दोनो कवियों का नाम बताना है
एक और संकेत आगमी बुधवार को इस महान कवि का जन्म दिवस भी है
है ना बहुत आसान सा कार्य । तो फिर देर किस बात की क्या आप पहचान गये हैं उस कवि को तो फिर अब देरी किस बात की जल्दी से जल्दी अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।
हार्दिक शुभकामनाओं सहित।
आज की हिन्दी साहित्य पहेली में आपके सम्मुख हिन्दी साहित्य के दो प्रसिद्ध कवियों की एक जैसी भाव भंगिमा और एक समान लय में लिखी गयी कवितायें प्रस्तुत हैं। आपको इन कविताओं के माध्यम से उनके लेखकों को पहचानना है।
पहली कविता इस प्रकार है
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए
और दूसरी कविता यह है
है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिए
जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए
रोज़ जो चेहरे बदलते है लिबासों की तरह
अब जनाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहिए
अब भी कुछ लोगो ने बेची है न अपनी आत्मा
ये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिए
फूल बन कर जो जिया वो यहाँ मसला गया
जीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए
छिनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो
आँख से आँसू नहीं शोला निकलना चाहिए
दिल जवां, सपने जवाँ, मौसम जवाँ, शब् भी जवाँ
तुझको मुझसे इस समय सूने में मिलना चाहिए
पहले संकेत के रूप में यह अवगत कराना चाहेगें कि इनमें से एक कविता को इस प्रसिद्ध कवि की हस्ताक्षर कविता माना जाता है।
दूसरे संकेत के रूप में बताना चाहेंगे कि इन दोनो प्रसिद्ध कवियों में एक को ईश्वर ने बहुत छोटा जीवन दिया था और वे हमारे बीच से 1977 में ही चले गये थे और दूसरे कवि आयु शतक की ओर अग्रसर हैं। उनके शतायु होने की शुभाकांक्षा के साथ आपको दोनो कवियों का नाम बताना है
एक और संकेत आगमी बुधवार को इस महान कवि का जन्म दिवस भी है
है ना बहुत आसान सा कार्य । तो फिर देर किस बात की क्या आप पहचान गये हैं उस कवि को तो फिर अब देरी किस बात की जल्दी से जल्दी अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।
हार्दिक शुभकामनाओं सहित।
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