बुधवार, 6 नवंबर 2013

हिन्दी साहित्य पहेली 107 का सही उत्तर और विजेता


प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,

घोषित है हिन्दी सहित्य पहेली 107 का सही उत्तर

नल दमयंती

और अब चर्चा इस पहेली 107 के परिणाम पर

1- और आज की पहेली में सही उत्तर भेजकर विजेता हैं सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी

  विजेता को हिंदी साहित्य पहेली परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनायें

मंगलवार, 5 नवंबर 2013

हिंदी साहित्य पहेली 107 पहचानिये इस प्रसिद्ध कथा को?

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,

  1. यह कथा आख्यान आर्यों के प्रसिद्ध प्राचीन दंतकथाओं में से एक है .
  2. यह उदात्त और अमर प्रेम की आदि कथा है .
  3. यह कथा महाभारत में भी (महाभारत, वनपर्व , अध्याय 53 से 78 तक) वर्णित है .
  4. यह इतनी सुन्दर,सरस और मनोहर है कि कई विद्वान् इसे महर्षि वेद व्यास रचित मानते हैं .
  5. इस कथा पर राजा रवि वर्मा के साथ ही अनेक चित्रकारों ने अपने चित्र/तैलचित्र बनाये हैं .
  6. यह अमर कथा अपनी नाट्य प्रस्तुतियों से कितनी बार ही मंचों को सुशोभित कर गयी है .
  7. 1945 में इस कथा पर फिल्म बनी थी ....
  8. मुज़फ्फर अली ने इस कथा पर टीवी सीरिअल भी निर्देशित किया था

इस पहेली में हल हेतु कोई संकेत नहीं,
तो फिर देर किस बात की तत्काल अपना उत्तर भेजें ताकि कोई और आपसे पहले पहेली का उत्तर भेजकर पहेली का विजेता न बन जाय।

शुभकामनाओं सहित


मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

हिन्दी साहित्य पहेली 106 के परिणाम विजेता सुश्री शारदा सुमन जी

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,


इस पहेली का परिणाम

हिंदी साहित्य पहेली 106 विश्व प्रसिद्ध पत्र के लेखक को पहचानना था 


यह ऐतिहासिक पत्र जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजी भाषा में अपनी पुत्री इन्दिरा जी को लिखे थे जिनका हिन्दी अनुवाद प्रसिद्ध उपन्यासकार प्रेमचंद ने किया था।



जवाहर लाल नेहरू से संबंधित अन्य जानकारी गद्यकोश पर  




इस पहेली के कई उत्तर हमें प्राप्त हुये जो सही थे सबसे पहले प्राप्त होने वाला उत्तर  सुश्री शारदा सुमन  जी  जी का रहा अतः आज के विजेता पद को सुशोभित करने का अधिकार जाता है सुश्री शारदा सुमन  जी को ।

 और अब चर्चा इस पहेली के परिणाम पर


1-इस बार सही उत्तर भेजकर विजेता बनी हैं सुश्री शारदा सुमन  जी (इस पहेली के लिये 10 अंक)


2- और आज की पहेली में सही उत्तर भेजकर उपविजेता हैं श्री सुनील झा  जी (इस पहेली के लिये 10 अंक)


3- और आज की पहेली में सही उत्तर भेजकर उपविजेता हैं श्री  प्रकाश गोविन्द जी (इस पहेली के लिये 10 अंक)
4-इस बार सही उत्तर भेजकर विजेता बनी हैं सुश्री  साधना वैद्य जी (इस पहेली के लिये 10 अंक)

आज की पहेली का सही उत्तर खोज कर साहित्य पहेली को प्रेषित कर इसमें सक्रिय भाग लेने के लिये हार्दिक आभार और शुभकामनाये


एक विशेष  बात


पहेली के नये नियमों के अधीन इस बार विजेता नये सिरे से घोषित किया जायेगा । माह अक्टूबर 2013 में पूछी गयी सभी पहेलियों के आधार पर मासिक विजेता का परिणाम जानने के लिये दिनांक 10 नवम्बर 2013 को हिन्दी साहित्य पहेली पढना मत भूलियेगा  



सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

हिंदी साहित्य पहेली 106 विश्व प्रसिद्ध पत्र के लेखक को पहचानना है

प्रिय पाठकगण तथा चिट्ठाकार मित्रों,

निम्न पंक्तियां लिखने वाले प्रसिद्ध व्यक्ति  का नाम  लिये बगैर स्वतंत्र भारत के इतिहास की कल्पना ही नहीं की जा सकती।

............तुम इतिहास किताबों में ही पढ़ सकती हो। लेकिन पुराने जमाने में तो आदमी पैदा ही न हुआ था; किताबें कौन लिखता? तब हमें उस जमाने की बातें कैसे मालूम हों? यह तो नहीं हो सकता कि हम बैठे-बैठे हर एक बात सोच निकालें। यह बड़े मजे की बात होती, क्योंकि हम जो चीज चाहते सोच लेते, और सुंदर परियों की कहानियाँ गढ़ लेते। लेकिन जो कहानी किसी बात को देखे बिना ही गढ़ ली जाए वह ठीक कैसे हो सकती है? लेकिन खुशी की बात है कि उस पुराने जमाने की लिखी हुई किताबें न होने पर भी कुछ ऐसी चीजें हैं जिनसे हमें उतनी ही बातें मालूम होती हैं जितनी किसी किताब से होतीं। ये पहाड़, समुद्र, सितारे, नदियाँ, जंगल, जानवरों की पुरानी हड्डियाँ और इसी तरह की और भी कितनी ही चीजें हैं जिनसे हमें दुनिया का पुराना हाल मालूम हो सकता है। मगर हाल जानने का असली तरीका यह नहीं है कि हम केवल दूसरों की लिखी हुई किताबें पढ़ लें, बल्कि खुद संसार-रूपी पुस्तक को पढ़ें। मुझे आशा है कि पत्थरों और पहाड़ों को पढ़ कर तुम थोड़े ही दिनों में उनका हाल जानना सीख जाओगी। सोचो, कितनी मजे की बात है। एक छोटा-सा रोड़ा जिसे तुम सड़क पर या पहाड़ के नीचे पड़ा हुआ देखती हो, शायद संसार की पुस्तक का छोटा-सा पृष्ठ हो, शायद उससे तुम्हें कोई नई बात मालूम हो जाय। शर्त यही है कि तुम्हें उसे पढ़ना आता हो। कोई जबान, उर्दू, हिंदी या अंग्रेजी, सीखने के लिए तुम्हें उसके अक्षर सीखने होते हैं। इसी तरह पहले तुम्हें प्रकृति के अक्षर पढ़ने पड़ेंगे, तभी तुम उसकी कहानी उसकी पत्थरों और चट्टानों की किताब से पढ़ सकोगी। शायद अब भी तुम उसे थोड़ा-थोड़ा पढ़ना जानती हो। जब तुम कोई छोटा-सा गोल चमकीला रोड़ा देखती हो, तो क्या वह तुम्हें कुछ नहीं बतलाता? यह कैसे गोल, चिकना और चमकीला हो गया और उसके खुरदरे किनारे या कोने क्या हुए? अगर तुम किसी बड़ी चट्टान को तोड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर डालो तो हर एक टुकड़ा खुरदरा और नोकीला होगा। यह गोल चिकने रोड़े की तरह बिल्कुल नहीं होता। फिर यह रोड़ा कैसे इतना चमकीला, चिकना और गोल हो गया? अगर तुम्हारी ऑंखें देखें और कान सुनें तो तुम उसी के मुँह से उसकी कहानी सुन सकती हो। वह तुमसे कहेगा कि एक समय, जिसे शायद बहुत दिन गुजरे हों, वह भी एक चट्टान का टुकड़ा था। ठीक उसी टुकड़े की तरह, उसमें किनारे और कोने थे, जिसे तुम बड़ी चट्टान से तोड़ती हो। शायद वह किसी पहाड़ के दामन में पड़ा रहा। तब पानी आया और उसे बहा कर छोटी घाटी तक ले गया। वहाँ से एक पहाड़ी नाले ने ढकेल कर उसे एक छोटे-से दरिया में पहुँचा दिया। इस छोटे से दरिया से वह बड़े दरिया में पहुँचा। इस बीच वह दरिया के पेंदे में लुढ़कता रहा, उसके किनारे घिस गए और वह चिकना और चमकदार हो गया। इस तरह वह कंकड़ बना जो तुम्हारे सामने है। किसी वजह से दरिया उसे छोड़ गया और तुम उसे पा गईं। अगर दरिया उसे और आगे ले जाता तो वह छोटा होते-होते अंत में बालू का एक जर्रा हो जाता और समुद्र के किनारे अपने भाइयों से जा मिलता, जहाँ एक सुंदर बालू का किनारा बन जाता, जिस पर छोटे-छोटे बच्चे खेलते और बालू के घरौंदे बनाते।
अगर एक छोटा-सा रोड़ा तुम्हें इतनी बातें बता सकता है, तो पहाड़ों और दूसरी चीजों से, जो हमारे चारों तरफ हैं, हमें और कितनी बातें मालूम हो सकती हैं।........



इस पहेली में हल हेतु कोई संकेत नहीं,
तो फिर देर किस बात की तत्काल अपना उत्तर भेजें ताकि कोई और आपसे पहले पहेली का उत्तर भेजकर पहेली का विजेता न बन जाय।

शुभकामनाओं सहित

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

हिन्दी साहित्य पहेली 105 का सही उत्तर

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,


इस पहेली का परिणाम

हिन्दी साहित्य पहेली 105  का सही उत्तर है 


गुलज़ार 


और इस पहेली के विजेता हैं ... 

हिन्दी साहित्य पहेली 105 में 10 अंक प्राप्त करने वाले प्रतिभागी हैं।

1आदरणीय सुश्री 
शारदा सुमन जी

2आदरणीया सुश्री साधना वेद्य जी 

3आदरणीय श्री प्रकाश गोविन्द जी 

4आदरणीय श्री राणा प्रताप सिंह जी 


माह अक्टूबर  अब तक के विजेता हेतु कुल अंक 


1आदरणीय श्री यशवन्त यश जी जी (माह अक्टूबर के विजेता हेतु अब तक कुल अंक 10)

2आदरणीय सुश्री शारदा सुमन जी (माह अक्टूबर के विजेता हेतु अब तक कुल अंक 20)

3आदरणीय सुश्री  विभारानी श्रीवास्तव (माह अक्टूबर के विजेता हेतु अब तक कुल अंक 5)

4आदरणीया सुश्री  साधना वेद्य जी (माह अक्टूबर के विजेता हेतु अब तक कुल अंक 10)

5आदरणीय श्री  श्री प्रकाश गोविन्द जी  (माह अक्टूबर के विजेता हेतु अब तक कुल अंक 5)

6आदरणीय श्री राणा प्रताप सिंह जी (माह अक्टूबर के विजेता हेतु अब तक कुल अंक 10)

मासिक विजेता निर्धारण के नये प्रारूप के विजेता प्रत्याशियों को आगामी पहेलियों के लिये अग्रिम हिंदी साहित्य पहेली परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनायें



सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

हिन्दी साहित्य की पहेली 105 पहचानिये इस प्रसिद्ध शायर को?

प्रिय पाठकगण तथा चिट्ठाकार मित्रों,

इस प्रसिद्ध शायर का नाम आज सफलता की उस बलंदी के लिए जाना जाता है जहाँ तक जाने के लिए हर कोई बेताब खड़ा है।

यह प्रसिद्ध शायर उन चंद नामी शायरों में से एक हैं जिन्होंने अपने गीतों, नज़्मों और कहानियों के लिए ख़्याति पायी। कुछ आगे ज़िक्र करूँ इससे पहले बताना चाहूँगा आज लगभग हर हिन्दी स्कूल में करायी जाने वाली प्रार्थना हम को मन की शक्ति देना दाता, मन विजय करें यह प्रसिद्ध शायर  का लिखा एक गीत है जो फ़िल्म गुड्डी से है। बच्चों के लिए लिखी गयी रचनाएँ जितनी यह प्रसिद्ध शायर  की सबकी ज़बाँ पर चढ़ीं शायद ही और कोई इतनी सरलता से हर नन्हें दिल में अपनी जगह बना पाया हो। अगर हम बात करें इस प्रसिद्ध शायर द्वारा लिखे बाल-गीतों की तो सबसे पहले जंगल बुक का टायटल गीत

जंगल-जंगल बात चली पता चला है, चड्ढी पहन के फूल खिला है फूल खिला है याद आता है,

और भी हैं जैसे एलिस इन वन्डर लैण्ड का टिप-टिप टोपी-टोपी,

काबुली वाला का आया झुन्नू वाला बाबा और अन्य कई फ़िल्मी गीत जैसे फ़िल्म मकड़ी का ए पापड़वाले पंगा न ले।

इस प्रसिद्ध शायर ने जब फ़िल्मी दुनिया में अपना स्थान बनाना चाहा तो उन्हें मौक़ा मिला बिमल राय जैसे महान फ़िल्मकार के साथ काम करने का, जिनसे उन्होंने निर्देशन का काम भली तरह समझा। फिर कोमल, सफल और सार्थक गीत लिखे, उनका हाथ यहीं तक सीमित नहीं रहा, आपने कई फ़िल्मों के लिए कथाएँ, पटकथाएँ और संवाद भी लिखे। जब फ़िल्म निर्देशन में उतरे तो ऐसी संवेदनशील, मार्मिम और हृदयस्पर्शी फ़िल्मों का निर्माण किया जिन्होंने फ़िल्म जगत में एक आन्दोलन ला दिया कि फ़िल्में सिर्फ़ चटपटी नहीं सादे-साधारण लोगों के जीवन पर आधारित भी हो सकती हैं और फ़िल्म देखने वालों के दिल में अपना नाम दर्ज़ करा सकने में गुल्ज़ार सफल होते चले गये और बस सफलता उनके पंख बन गयी जो कभी कटे नहीं और आज भी आकाश में दूर तक उड़ने को सदा तत्पर हैं।

कुछ फ़िल्मों के नाम हैं जो सदा याद की जाती है और याद रखी जायेंगी, मेरे अपने, अचानक, परिचय, आँधी, मौसम, ख़ुशबू, मीरा, किनारा, नमकीन, लेकिन, लिबास, माचिस, इत्यादि।

इस पहेली में हल हेतु कोई संकेत नहीं,
तो फिर देर किस बात की तत्काल अपना उत्तर भेजें ताकि कोई और आपसे पहले पहेली का उत्तर भेजकर पहेली का विजेता न बन जाय।

शुभकामनाओं सहित

मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013

हिन्दी साहित्य पहेली 104 के परिणाम

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,


इस पहेली का परिणाम

हिन्दी साहित्य पहेली 104 यह  भारतीय किताब 'पंचतंत्र' की है !

एक बार पंचतंत्र के रचयिता विष्णु शर्मा बच्चों के साथ खेल रहे थे। उन्हें बच्चों के साथ खेलने में बड़ा आनंद मिलता था। उनके साथ खेलते समय वह हर तरह की समस्या व परेशानी को भूल जाते थे। तभी उनका एक मित्र वहां आ पहुंचा। विष्णु शर्मा को बच्चों के साथ खेलते देखकर वह बोला,
'पंडित जी, आप इतने महान विद्वान होकर भी बच्चों के बीच खेल रहे हैं? क्या आपको यह शोभा देता है? मुझे आप जैसे विद्वान को बच्चों के साथ खेलते देखकर अत्यंत अचरज हो रहा है।'
यह सुनकर विष्णु शर्मा बोले,
'क्यों, इसमें अचरज की क्या बात है? खेलने से दिमाग स्वस्थ रहता है। खेल के माध्यम से व्यक्ति अपनी पीड़ा और दुख को भूल जाता है।'
इस पर उनके मित्र बोले, 'पर आप तो बड़े लेखक हैं । खेलने से आपका अमूल्य समय नष्ट नहीं होता? आप यह सोचिए न कि जितनी देर आप बच्चों के साथ खेल रहे हैं, उतनी ही देर में किसी अच्छी रचना का सृजन कर सकते हैं।'
मित्र की बात पर विष्णु शर्मा मुस्कराने लगे और मित्र से बोले, 'तुम लेखक नहीं हो न, इसलिए इस तरह की बातें कर रहे हो वरना तुम ऐसा कभी नहीं कहते।
शायद तुम नहीं जानते कि बच्चों के साथ खेल कर, उनके बीच रहकर ही मैं उनके हाव-भाव को कुशलता से समझ कर अपनी रचना में उतार पाता हूं। बच्चों को जाने-समझे बिना भला उनके बारे में लिखना कैसे संभव है? अब तुम्हीं बताओ कि यदि तुम्हारा खाना खाने का मन हो और तुम्हें खाना बनाना न आता हो तो क्या तुम अच्छा खाना बना पाओगे?'
मित्र बोला, 'नहीं पंडित जी, मैं आपकी बात का अर्थ समझ गया। आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। बच्चों के लिए लिखने से पहले वाकई उनके भाव और कल्पनाओं का ज्ञान जरूरी है।'
यह कहकर उनका मित्र चला गया और विष्णु शर्मा फिर से बच्चों के साथ खेलने में रम गए।

यह ऐतिहासिक कृति 'पंचतंत्र' के फारसी अनुवाद  संबंधित अन्य जानकारी आप गद्यकोश के इस लिंक पर जाकर पा सकते हैं ।

पंचतंत्र की कथाओं से संबंधित अन्य जानकारी गद्यकोश पर


 1-और सही उत्तर सर्वप्रथम भेजकर विजेता बने हैं-

श्री Yashwant Yashजी 


                   
2- और आज की पहेली में उत्तर भेजकर  प्रतिभाग करने के लिये सराहनीय प्रतिभागी रही हैं

सुश्री vibha rani Shrivastava जी

3-नोट .सुश्री शारदा सुमनजी https://www.facebook.com/sharda.suman.5का उत्तर पहेली का परिणाम प्रकाशित होने के बाद प्राप्त हुआ है 

इस लिये उनका नाम विजेताओ की सूची में नहीं सम्मिलित किया जा सका 

आज की पहेली का सही उत्तर खोज कर साहित्य पहेली को प्रेषित कर इसमें सक्रिय भाग लेने के लिये हार्दिक आभार और शुभकामनाये


सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

हिन्दी साहित्य की पहेली 104 प्रसिद्ध लेखक पहचानिये

प्रिय पाठकगण तथा चिट्ठाकारों,

पहचानिये कि बच्चों के लिये अनुपम साहित्य लिखने वाले कौन से प्रसिद्ध लेखक से जुडा प्रेरक प्रसंग हो सकता है यह?

बच्चों के लिये अनुपम साहित्य लिखने वाले एक प्रसिद्ध लेखक एक बार बच्चों के साथ खेल रहे थे। उन्हें बच्चों के साथ खेलने में बड़ा आनंद मिलता था। उनके साथ खेलते समय वह हर तरह की समस्या व परेशानी को भूल जाते थे। तभी उनका एक मित्र वहां आ पहुंचा। लेखक को बच्चों के साथ खेलते देखकर वह बोला,
'पंडित जी, आप इतने महान विद्वान होकर भी बच्चों के बीच खेल रहे हैं? क्या आपको यह शोभा देता है? मुझे आप जैसे विद्वान को बच्चों के साथ खेलते देखकर अत्यंत अचरज हो रहा है।'
यह सुनकर लेखक बोले,
'क्यों, इसमें अचरज की क्या बात है? खेलने से दिमाग स्वस्थ रहता है। खेल के माध्यम से व्यक्ति अपनी पीड़ा और दुख को भूल जाता है।'
इस पर उनके मित्र बोले,
'पर आप तो बड़े लेखक हैं । खेलने से आपका अमूल्य समय नष्ट नहीं होता? आप यह सोचिए न कि जितनी देर आप बच्चों के साथ खेल रहे हैं, उतनी ही देर में किसी अच्छी रचना का सृजन कर सकते हैं।'
मित्र की बात पर लेखक मुस्कराने लगे और मित्र से बोले,
'तुम लेखक नहीं हो न, इसलिए इस तरह की बातें कर रहे हो वरना तुम ऐसा कभी नहीं कहते। शायद तुम नहीं जानते कि बच्चों के साथ खेल कर, उनके बीच रहकर ही मैं उनके हाव-भाव को कुशलता से समझ कर अपनी रचना में उतार पाता हूं। बच्चों को जाने-समझे बिना भला उनके बारे में लिखना कैसे संभव है? अब तुम्हीं बताओ कि यदि तुम्हारा खाना खाने का मन हो और तुम्हें खाना बनाना न आता हो तो क्या तुम अच्छा खाना बना पाओगे?'
मित्र बोला,
'नहीं पंडित जी, मैं आपकी बात का अर्थ समझ गया। आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। बच्चों के लिए लिखने से पहले वाकई उनके भाव और कल्पनाओं का ज्ञान जरूरी है।'
यह कहकर उनका मित्र चला गया और लेखक फिर से बच्चों के साथ खेलने में रम गए।




इस पहेली में हल हेतु कोई संकेत नहीं,
तो फिर देर किस बात की तत्काल अपना उत्तर भेजें ताकि कोई और आपसे पहले पहेली का उत्तर भेजकर पहेली का विजेता न बन जाय।

शुभकामनाओं सहित