मंगलवार, 26 जून 2012

हिन्दी साहित्य पहेली 87 परिणाम और विजेता हैं सुश्री ऋता शेखर  ‘मधु’ जी


प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,

पहेली संख्या 87 में आपको लेखक को पहचानना था

इस पहेली का परिणाम
इस सहित्य पहेली 87 का विजेता घोषित करने से पहले आपको सही उत्तर बताते हैं श्रीयुत चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी

और अब चर्चा इस पहेली के परिणाम पर

1- इस बार सबसे पहले सही उत्तर भेजकर विजेता के विजेता बनी हैं
सुश्री ऋता शेखर  ‘मधु’ जी।



2-और सही उत्तर भेज कर इस पहेली के उप विजेता हैं आदरणीय डा0 रूपचंद शास्त्री ‘मयंक’जी


आज की पहेली में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को हार्दिक शुभकामनाये

सोमवार, 25 जून 2012

हिन्दी साहित्य पहेली 87 इस साहित्यकार को पहचानना है?

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों


आज की साहित्य पहेली हिन्दी के ऐसे साहित्कार से संबंधित है जिसे ईश्वर ने लंबी आयु नहीं दी परन्तु इसके बावजूद हिन्दी साहित्य को दी गयी दी गयी इनकी धरोहर अनमोल है। इस रचनाकार के संबंध में कुछ जानकारी दी जा रही है जिसके आधार पर आपको इस साहित्यकार को पहचानना है

जयपुर के राजपण्डित के कुल में जन्म लेनेवाले इस रचनाकार का राजवंशों से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा। वे पहले खेतड़ी नरेश जयसिंह के और फिर जयपुर राज्य के सामन्त-पुत्रों के अजमेर के मेयो कॉलेज में अध्ययन के दौरान उनके अभिभावक रहे। सन् 1916 में उन्होंने मेयो कॉलेज में ही संस्कृत विभाग के अध्यक्ष का पद सँभाला। सन् 1920 में पं. मदन मोहन मालवीय के प्रबंध आग्रह के कारण उन्होंने बनारस आकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राच्यविद्या विभाग के प्राचार्य और फिर 1922 में प्राचीन इतिहास और धर्म से सम्बद्ध मनीन्द्र चन्द्र नन्दी पीठ के प्रोफेसर का कार्यभार भी ग्रहण किया। इस बीच परिवार में अनेक दुखद घटनाओं के आघात भी उन्हें झेलने पड़े। सन् 1922 में 12 सितम्बर को पीलिया के बाद तेज़ बुख़ार से मात्र 39 वर्ष की आयु में उनका देहावसान हो गया।


क्या आप पहचान गये हैं उस रचनाकार को? तो फिर देर किस बात की तो फिर अब देरी किस बात की जल्दी से जल्दी अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।

हार्दिक शुभकामनाओं सहित।

मंगलवार, 19 जून 2012

हिन्दी साहित्य पहेली 86 परिणाम और विजेता हैं सुश्री साधना वैद्य जी


प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,

पहेली संख्या 86 में आपको हिन्दी में लिखी गयी आत्म परिचयात्मक पद्यात्मक रचना के लेखक को पहचानना था

इस पहेली का परिणाम
इस सहित्य पहेली 86 का विजेता घोषित करने से पहले आपको सही उत्तर बताते हैं कि आत्म परिचय के रूप में लिखी गयी इस पद्यात्मक रचना के रचयिता हैं श्रीयुत हरिवंशराय बच्चन जी
पूरी कविता इस प्रकार है
मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ!

मैं स्‍नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्‍यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा है उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ!

मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ;
है यह अपूर्ण संसार ने मुझको भाता
मैं स्‍वप्‍नों का संसार लिए फिरता हूँ!

मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्‍न रहा करता हूँ;
जग भ्‍ाव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्‍त बहा करता हूँ!

मैं यौवन का उन्‍माद लिए फिरता हूँ
उन्‍मादों में अवसाद लए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ!

कर यत्‍न मिटे सब, सत्‍य किसी ने जाना?
नादन वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर मूढ़ न क्‍या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भूलना!

मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता;
जग जिस पृथ्‍वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्‍वी को ठुकराता!

मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिसपर भूपों के प्रसाद निछावर,
मैं उस खंडर का भाग लिए फिरता हूँ!

मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्‍यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!

मैं दीवानों का एक वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्‍ती का संदेश लिए फिरता हूँ!

और अब चर्चा इस पहेली के परिणाम पर

1- इस बार सबसे पहले सही उत्तर भेजकर विजेता के विजेता बनी हैं
सुश्री साधना वैद्य जी

2-और सही उत्तर भेज कर आज के प्रथम उपविजेता पद पर विराजमान हुई हैं सुश्री ऋता शेखर  ‘मधु’ जी।


3-इस बार थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर उपविजेता बने है स्नेही भ्राता श्री सवाई सिंह राजपुरोहित जी

आज की पहेली में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को हार्दिक शुभकामनाये

सोमवार, 18 जून 2012

हिन्दी साहित्य पहेली 86 पद्यात्मक आत्म परिचय का लेखक कौन है?

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों


आज की पहेली पिछली पहेली से जुडी है । पिछली पहेली में आपने बताया था कि हिन्दी भाषा में पहली आत्मकथा गद्य रूप में नहीं अपितु पद्यात्मक थी और इसे बनारसी दास जैन द्वारा 1641 में लिखा गया था । आज की पहेली में हम पुनः एक ऐसी ही रचना प्रस्तुत कर रहे हैं जो पद्यात्मक है और आत्म परिचय के रूप में लिखी गयी है

मैं वह खंडहर का भाग लिये फिरता हूं।

मैं रोया इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पडा, तुम कहते , छंद बनाना,

क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपराऐ,
मैं दुनिया का हूं एक नया दीवाना।

मैं दीवानों का वेश लिये फिरता हूं,
मैं मादकता निःशेष लिये फिरता हूं ,

जिसको सुनकर जग झूम ,झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिये फिरता हूं।


आपको यह बताना है कि इस आत्म परिचयात्मक रचना के लेखक कौन हैं
संकेत के रूप में तीन नाम प्रस्तुत हैं जिनमें से कोई एक इस आत्म परिचयात्मक कविता का लेखक है
वे नाम हैं

1. जयशंकर प्रसाद जी

2. हरिवंशराय बच्चन

3. कविवर देव (देवदत्त द्विवेदी)


क्या आप पहचान गये हैं उस रचनाकार को? तो फिर देर किस बात की तो फिर अब देरी किस बात की जल्दी से जल्दी अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।

हार्दिक शुभकामनाओं सहित।

मंगलवार, 12 जून 2012

हिन्दी साहित्य पहेली 85 परिणाम और विजेता हैं श्री सवाई सिंह राजपुरोहित जी

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,

पहेली संख्या 85 में आपको हिन्दी में लिखी गयी पहली आत्मकथा के लेखक को पहचानना था

इस सहित्य पहेली 85 का विजेता घोषित करने से पहले आपको सही उत्तर बताते हैं जो है श्री बनारसी दास जैन

इस पहेली का परिणाम
बनारसी दास जैन कृत 'अर्धकथानक' हिन्दी की पहली आत्मकथा मानी जाती है। श्रीयुत बनारसी दास जैन द्वारा लिखी गयी 'अर्द्धकथानक' को किसी भी भारतीय भाषा में लिखी गयी पहली आत्मकथा माना जाता है ! इससे पूर्व आत्मकथा लिखने का चलन भारतीय साहित्य में नहीं था ! इसकी रचना सन 1641 में हुयी थी और यह पद्यात्मक है। रचनाकार- श्रीयुत बनारसी दास जैन अर्द्धकथानक में उनके प्रथम पचास वर्षों का रोचक और यथार्थ विवरण है, जो सभी प्रकार से आत्मकथा की परिभाषा में आता है। बनारसीदास का जीवन आगरा में बीता.. "अर्ध कथानक" ही भारतीय साहित्य की पहली आत्मकथा है, इसका प्रकाशन हिन्दी ग्रंथ कार्यालय मुंबई से हुआ ..

और अब चर्चा इस पहेली के परिणाम पर

1- इस बार सबसे पहले सही उत्तर भेजकर विजेता के विजेता बने हैं आदरणीय श्री सवाई सिंह राजपुरोहित जी



2-और सही उत्तर भेज कर आज के प्रथम उपविजेता पद पर विराजमान हुए हैं आगरा के श्री सोनू जी


सोनू जी, कृपया अपना एक चित्र भी इ मेल पर भेजें जिससे अपने सभी सुधी पाठको के अवलोकनार्थ हिन्दी साहित्य पहेली ब्लाग पर डाला जा सके ।


3-इस बार थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर उपविजेता  बनी हैं सुश्री ऋता शेखर  ‘मधु’ जी।




4-और इस बार पहेली में शामिल होकर पहेली का सही उत्तर देकर साहित्यिक अभिरुचि प्रदर्शित करने के कारण विशिस्ट विशिष्ट विजेता हैं सुश्री साधना वैद्य जी श्री अजय सिंह जी 





आज की पहेली में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को हार्दिक शुभकामनाये


सोमवार, 11 जून 2012

हिन्दी साहित्य पहेली 85 हिन्दी की पहली आत्मकथा का लेखक कौन है?


प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों

आज की साहित्य पहेली हिन्दी आत्मकथा पर आधारित है । आज की पहेली में आपको हिन्दी की पहली आत्मकथा के बारे में बताना है कि हिन्दी में किस रचना को पहली आत्मकथा माना जाता है।

प्रथम संकेत के रूप में बता दें कि इसकी रचना सन 1641 में हुयी थी

दूसरे संकेत के रूप में यह भी बताना चाहेंगे कि यह पद्यात्मक है।

तीसरा और अंतिम संकेत निम्न तीन में से ही कोई एक हिन्दी की आत्मकथा का लेखक है

1. कविवर देव (देवदत्त द्विवेदी)

2. बनारसी दास जैन

3. तुलसीदास

क्या आप पहचान गये हैं उस रचनाकार को? तो फिर देर किस बात की तो फिर अब देरी किस बात की जल्दी से जल्दी अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।

हार्दिक शुभकामनाओं सहित।

मंगलवार, 5 जून 2012

हिन्दी साहित्य पहेली 84 परिणाम और विजेता हैं सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,

पहेली संख्या 84 में आपको पता लगाना था कि ये चार पक्तियां किसी एक गजल के ही दो शेर हैं या दो अलग अलग गजलों के दो पृथक पृथक शेर है।
संकेत के रूप में यह बताया गया था कि इन शेरो के रचयिता हिन्दी साहित्य जगत की अमूल्य धरोहर है। इसका सही उत्तर है की ये दो अलग अलग गजलों के दो पृथक पृथक शेर है और इन्हें लिखने वाली महान हस्तिया है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जब आंख ही से ना टपका तो फिर लहू क्या है ।।

-- मिर्जा ग़ालिब जी



जो जुल्म सह के भी चुप रह गया ना खौला था
वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था

--गोपालदास नीरज


और अब चर्चा इस पहेली के परिणाम पर

इस बार सबसे पहले सही उत्तर भेजकर विजेता के पद पर विराजमान हुई हैं सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी।



इस बार थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर उपविजेता बनी हैं सुश्री साधना वैद्य जी

सुश्री साधना जी ने दोनों गजलों के मुखडे भी अपनी टिप्पणी में साझा किये हैं जो इस प्रकार है

पहला शेर मिर्ज़ा ग़ालिब की गज़ल से है जिसका पहला शेर है
हरेक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है ,
तम्हीं कहो कि ये अंदाज़े गुफ्तगू क्या है !
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जब आँख ही से ना टपका तो वो लहू क्या है !

दूसरा शेर श्री गोपालदास नीरज की गज़ल से है-
दूर से दूर तलक एक भी दरख़्त न था
तुम्हारे घर का सफर इस कदर सख्त न था
जो ज़ुल्म सह के भी चुप रह गया न खौला था
वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था !



और इस बार पहेली में शामिल होकर पहेली का आधा सही उत्तर देकर साहित्यिक अभिरुचि प्रदर्शित करने के कारण विशिस्ट विजेता बने हैं आदरणीय श्री सवाई सिंह राजपुरोहित जी



विजेता सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी उपविजेता सुश्री साधना वैद्य जी विशिस्ट विजेता श्री सवाई सिंह राजपुरोहित जी को हार्दिक बधाई

सोमवार, 4 जून 2012

हिंदी साहित्य पहेली 84 शेरों के रचयिता का नाम

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों

आज की पहेली में आपको निम्न चार पंक्तियां दी जा रही हैं जो गजल के दो शेर हैं।

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जब आंख ही से ना टपका तो फिर लहू क्या है ।।


जो जुल्म सह के भी चुप रह गया ना खौला था
वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था



आपको पता लगाना है कि ये चार पक्तियां किसी एक गजल के ही दो शेर हैं या दो अलग अलग गजलों के दो पृथक पृथक शेर है।
जब आप यह पहचान जायें कि ये एक ही गजल के शेर है या दो गजलों के तो तत्काल हमें बतायें कि इस शेरों के रचयिता कौन हैं ।
संकेत के रूप में यह बताना चाहेंगे कि इन शेरो के रचयिता हिन्दी साहित्य जगत की अमूल्य धरोहर है।

अब तक शायद आप पहचान गये होंगे तो फिर देर किस बात की, तुरंत अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।

हार्दिक शुभकामनाओं सहित।