शनिवार, 20 अगस्त 2011

पहेली संख्या-४०

प्रिय चिट्ठाकारों ,
          आज समय नवचेतना का है.देश में चारों ओर भ्रष्टाचार के विरूद्ध लोगों में नवचेतना का उदय हो रहा है.ऐसे में आज की पहेली इस परिस्थिति से कैसे पृथक  रह सकती है?
    नवगीत में राष्ट्र का एक मूर्त स्वरुप सामने आता है .नवगीत के कवियों ने प्रकृति शोषण के विरुद्ध जितना ओर जैसा रचनात्मक क्रोध व्यक्त किया है वह अन्यत्र दुर्लभ है .जंगलों का विनाश ,पहाड़ों को नंगा करना ओर नदियों को बांधकर उसको बहुआयामी प्रयोजनशीलता से काटकर मात्र ऊर्जा का स्रोत बना देना न तो युक्ति संगत है और न विकास का सच्चा पक्षधर -सोम ठाकुर ,अनूप अशेष  आदि के गीत इस दिशा में महत्वपूर्ण हैं .राष्ट्र के विकास में बाधक तत्वों के प्रति नवगीत में गहरी चिंता व्यक्त की गयी है -
''ठंडा खून गरम है ,नारे बेच रहे ईमान.
लिए कटोरा घूम रहा है सारा हिंदुस्तान.
सिर्फ आंकड़े अख़बारों में छपे तबाही के .
सत्य यहाँ पीछे चलता है सदा  गवाही के.''
अब प्रश्न-
ये पंक्तियाँ किसके नवगीत से ली गयी हैं-
१- जगदीश श्रीवास्तव
२-डॉ.सत्येन्द्र शर्मा
३-रमेश चन्द्र शुक्ल
४- उमाकांत मालवीय
     कोई विकल्प नहीं-शर्ते वही:
शालिनी कौशिक

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