सोमवार, 29 अगस्त 2011

हिन्दी साहित्य पहेली 43 ‘जन्मदिवस की शुभकामनाऐं’

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,

30 अगस्त सन् 1903 में तत्कालीन यूनाइटेड प्राविन्स वर्तमान उत्तर प्रदेश के जनपद उन्नाव की तहसील सफीपुर में एक सम्भा्न्त कायस्थ परिवार में एक कालजयी लेखक का जन्म हआ था। इन्होंने कविता , उपन्यास, कहानी , निबंध और नाटक लिखकर साहित्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है।
आज की पहेली के केन्द्र में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में लिखा गया इनका एक लोकप्रिय उपन्यास है। इस उपन्यास में एक महान योगी कुमारगिरि और भोग-विलास और वासना में लिप्त शासक बीजगुप्त के चरित्रों की पारस्परिक तुलना में अप्रत्याशित रूप से पाप और पुण्य की नयी परिभाषा गढ़ी गयी हैं। इसी निष्कर्ष के साथ यह उपन्यास समाप्त होता है:-



‘संसार में पाप कुछ भी नहीं है, वह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। प्रत्येक व्यक्ति एक विशेष प्रकार की मनःप्रवृति लेकर पैदा होता है । प्रत्येक व्यक्ति इस संसार के रंगमंच पर एक अभिनय करने आता है। अपनी मनःप्रवृति से प्रेरित होकर अपने पाठ को वह दोहराता है यही मनुष्य का जीवन है जो कुछ मनुष्य करता है वह उसके स्वभाव के अनुकूल होता है और स्वभाव प्राकृतिक होता है। मनुष्य अपना स्वामी नहीं है वह परिस्थितियों का दास है-विवश है। कर्ता नहीं है, वह केवल साधन मात्र हैं । फिर पाप और पुण्य कैसा?
मनुष्य में ममत्व प्रधान होता है। प्रत्येक मनुष्य सुख चाहता है। केवल व्यक्तियों के सुख के केन्द्र भिन्न होते हैं । कुछ सुख को धन में देखते हैं , कुछ त्याग में देखते हैं -पर सुख प्रत्येक व्यक्ति चाहता है, कोई भी व्यक्ति संसार में अपनी इच्छानुसार वह काम न करेगा जिसमें दुःख मिले -यही मनुष्य की मनःप्रवृति है औ उसके दृष्टिकोण की विषमता हैं ।
संसार में इसीलिये पाप की परिभाषा नहीं हो सकी और न हो सकती है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।’

उपरोक्त पंक्तियां इस उपन्यास का सार भी हैं। आपको इस कालजयी उपन्यास और इसके लेखक को पहचानना है ।

आपकी सहायता के लिये कुछ संकेत लिख रहा हूँ

संकेत1ः- साठ के दशक में इस लोकप्रिय उपन्यास पर आधारित एक बहुचर्चित हिंदी फिल्म भी बनायी गयी थी।

संकेत2ः-उपरोक्त पंक्तियों के लेखक की साहित्यिक साधना के प्रतिफल के रूप में वर्ष 1961 में इन्हें साहित्य अकादमी पुरूस्कार से पुरूस्कृत भी किया गया था।

संकेत3ः-वर्ष 1969 में इन्हें ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि से अलंकृत किया गया।

संकेत4ः-ये वर्ष 1978 में भारतीय संसद के उच्च सदन राज्य सभा के लिये चुने गये थे।

संकेत5ः-इनके अन्य प्रमुख उपन्यास ‘भूले बिसरे चित्र,’ ‘सीधी-सच्ची बातें,’ प्रश्न और मरीचिका, सबहिं नचावत राम गोसाईं, सामर्थ्य और सीमा , रेखा, वह फिर नहीं आयी, और ....

नहीं .......नहीं......बस.......... अब और नहीं.......
पहचानिये इस लेखक और इसकी उस रचना को जिसका अंतिम निष्कर्ष ऊपर दिया गया है। है ना आसान ! जल्दी से अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।

3 टिप्‍पणियां:

आप सभी प्रतिभागियों की टिप्पणियां पहेली का परिणाम घोषित होने पर एक साथ प्रदर्शित की जायेगीं