आज की साहित्य पहेली ग्वालिनों की उलाहना पर आधारित है । इस उलाहना से संबंधित एक पद नीचे दिया जा रहा है जिसकी अंतिम पंक्ति में रचनाकार का आधा नाम लिखा है और आधा भाग छिपा दिया गया है आपको पहचानना है छिपाये गये भाग में अधूरे शब्दों को , और उन्हे अंकित कर पहेली का हल खोजना है ।
(राग केदारा)
अबहि उरहनो दै गई , बहुरौ फिरि आई ।
सुनु मैया! तेरी सौं करौं, याको टेव लरन की, सकुच बेंचि सी खाई।।1।।
या ब्रज में लरिका धने, हौं ही अन्याई ।
मुँह लाएँ मूँडहिं चढ़ी, अंतहुँ अहिरिनि, तू सूधी करि पाई।।2।।
सुनि सुत की अति चातुरी जसुमति मुसुकाई ।
...........दास ग्वालिनि ठगी, आयो न उतरू, कछु, कान्ह ठगौरी लाई।।3।
पहले संकेत के रूप में आपको बता दें कि सूरदास, तुलसिदास, रामसुखदास और कबीरदास में से एक नाम इस स्थान पर सही बैठेगा और वही नाम रचनाकार का नाम होगा।
दूसरे संकेत में यह भी बताये देते हैं कि दिये गये नामों में से केवल एक ही नाम रिक्त स्थान पर रखने पर राग केदारा की यह रचना मात्राओं के पैमाने पर खरी उतरेगी।
तो फिर अब देरी किस बात की जल्दी से सूर , तुलसि, रामसुख, और कबीर लगाकर पद को मात्राओं के पैमाने पर देख लें और हल भी तुरंत भेजें।
जल्दी से अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।
रामसुख,
जवाब देंहटाएंसही उत्तर :- सूर दास
जवाब देंहटाएंलाइन होगी
सूरदास ग्यालिनि ठगी ,आयो न उतारू ---------लाई |
आशा
surdas ji
जवाब देंहटाएंगोपी उपालंभ (रास केदारा) / तुलसीदास
जवाब देंहटाएंगोपी उपालंभ (रास केदारा)
(1)
महरि तिहारे पायँ परौं अपनो ब्रज लीजै।
सहि देख्यो तुम सेां कह्यो अब नाकहिं आई कौन दिनहिं दिन छीजै।।1।।
ग्वालिनि तौ गोरस सुखी ता बिनु क्यों जीजै।
सुत समेत पाउँ धारि आपुहि भवन मेरे देखिये जो न पतीजै।।2।।
अति अनीति नीकी नहीं अजहूँ सिख दीजै।
तुलसिदास प्रभु सों कहै उर लाइ जसोमति ऐसी बलि कबहूँ नहिं कीजै।।3।।
(2)
अबहि उरहनो दै गई बहुरौ फिरि आई ।
सुनु मैया! तेरी सौं करौं याको टेव लरन की सकुच बेंचि सी खाई।।1।।
या ब्रज में लरिका धने हौं ही अन्याई ।
मुँह लाएँ मूँडहिं चढ़ी अंतहुँ अहिरिनि तू सूधी करि पाई।।2।।
सुनि सुत की अति चातुरी जसुमति मुसुकाई ।
तुलसिदास ग्वालिनि ठगी आयो न उतरू कछु कान्ह ठगौरी लाई।।3।