मंगलवार, 27 मार्च 2012

हिंदी साहित्य पहेली 74 का परिणाम और विजेता सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों

पहेली संख्या 74 में आपको इन पंक्तियों को लेखन से जुडे राजकवि को पहचानना था
चंदन कर्दम कलहे भेको मध्यस्थतापन्नः।

ब्रूते पंक निमग्नः कर्दम साम्यं च चंदन लभते।।


इसका सही उत्तर है राजकवि गुमानी
इनका संक्षिप्त परिचय और कृतित्व इस प्रकार है-

गुमानी का जन्म विक्रत संवत् १८४७, कुमांर्क गते २७, बुधवार, फरवरी १७९० में नैनीताल जिले के काशीपुर में हुआ था।
संस्कृत और हिन्दी के कवि थे । वे कुमाऊँनी तथा नेपाली के प्रथम कवि थे। कुछ लोग उन्हें खड़ी बोली का प्रथम कवि भी मानते हैं। सर ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया में गुमानी जी को कुर्मांचल प्राचीन कवि माना है। डॉ. भगत सिंह के अनुसार कुमाँऊनी में लिखित साहित्य की परंपरा १९वीं शताब्दी से मिलती हैं और यह परंपरा प्रथम कवि गुमानी पंत से लेकर आज तक अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है। इन दो दृष्टांतों से यह सिद्ध हो जाता है कि गुमानी जी ही प्राचीनतम कवि थे। राजकवि के रूप में गुमानी जी सर्वप्रथम काशीपुर नरेश गुमान सिंह देव की राजसभा में नियुक्त हुए।

अब चर्चा इन उपरोक्त पंक्तियों के लेखन से जुडे प्रसंग के बारे
राजसभा के अन्य कवि इनकी प्रतिभा से ईर्ष्या करने लगे। एक बार काशीपुर के ही पंडित सुखानंद पंत ने इन पर व्यंग्य कसा। पर्याप्त शास्त्रार्थ हुआ। जब महाराज गुमान सिंह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके तो मध्यस्थ की आवश्यकता हुई। उन्होंने मुरादाबाद के पंडित टीकाराम शर्मा को मध्यस्थ बनाया। टीकाराम जी भी गुमानी जी की प्रतिभा से ईर्ष्या करते थे। अतः उन्होंने सुखानंद संत का ही साथ दिया, गुमानी जी को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और वे तत्काल निम्नलिखित श्लोक लिखकर सभा से बाहर चले गए-
चंदन कर्दम कलहे भेको मध्यस्थतापन्नः।

ब्रूते पंक निमग्नः कर्दम साम्यं च चंदन लभते।।

अर्थात चंदन और कीचड़ में विवाद हुआ और मेंढक को मध्यस्थ बनाया गया। चूँकि मेंढक कीचड़ में ही रहता है, वह चंदन का साथ भला कैसे दे सकता है?
ऐसे स्वाभिमानी थे राजकवि गुमानी


और अब चर्चा इस पहेली के परिणाम पर
इस बार सबसे पहले सही उत्तर भेजकर विजेता के पद पर विराजमान हुई हैं सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी


और मात्र दो मिनट के बिलम्ब के साथ ( सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी ने २ बजकर १३ मिनट पर उत्तर दिया जबकि सुश्री साधना वैद्य जी ने २ बजकर १५ मिनट पर ) सही उत्तर देकर आज के प्रथम उपविजेता पद पर विराजमान हुई हैं सुश्री साधना वैद्य जी


और थोडे से और बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर द्वितीय उपविजेता पद पर विराजमान हुए है श्री यशवंत माथुर जी

आप सभी विजेता तथा उपविजेता गणों को हार्दिक बधाई

सोमवार, 26 मार्च 2012

हिंदी साहित्य पहेली 74 राजकवि को पहचानो

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों

आज की पहेली एक ऐसे राजकवि पर आधारित है जिसने संस्कृत तथा हिन्दी में तो काव्य रचनायें की ही साथ ही इन्हें नेपाली के पृथम कवि होने का भी गौरव प्राप्त हुआ उनके द्वारा संस्कृत भाषा में लिखी दो पंक्तियां हैं

चंदन कर्दम कलहे भेको मध्यस्थतापन्नः।

ब्रूते पंक निमग्नः कर्दम साम्यं च चंदन लभते।।


अर्थात चंदन और कीचड़ में विवाद हुआ और मेंढक को मध्यस्थ बनाया गया। चूँकि मेंढक कीचड़ में ही रहता है, वह चंदन का साथ भला कैसे दे सकता है?

इन पंक्तियों को लेखन से जुडे प्रसंग के बारे में पहेली के उत्तर में चर्चा अवश्य करेंगे । फिलहाल तो आपको उपरोक्त पंक्तियों के आधार पर इस राजकवि को पहचानना है
अब तक शायद आप पहचान गये होंगे तो फिर देर किस बात की, तुरंत अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।

हार्दिक शुभकामनाओं सहित।

मंगलवार, 20 मार्च 2012

हिंदी साहित्य पहेली 73 का परिणाम और विजेता श्री यशवंत माथुर जी

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों

पहेली संख्या 73 में आपको पता लगाना है आपको पता लगाना था कि ये चार पक्तियां किसी एक गजल के ही दो शेर हैं या दो अलग अलग गजलों के दो पृथक पृथक शेर है।
संकेत के रूप में यह बताया गया था कि इन शेरो के रचयिता हिन्दी साहित्य जगत की अमूल्य धरोहर है। इसका सही उत्तर है की ये दो अलग अलग गजलों के दो पृथक पृथक शेर है और इन्हें लिखने वाली महान हस्तिया है


अपना ग़म लेके कही और न जाया जाए

घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए

- निदा फ़ाज़ली




अब तो मजहब कोई ऐसा चलाया जाए

जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए

- नीरज


और अब आते हैं परिणाम पर
इस बार पुनः सबसे पहले सही उत्तर भेजकर विजेता के पद पर विराजमान हुये हैं श्री यशवंत माथुर जी

और थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर प्रथम उपविजेता पद पर विराजमान हुई हैं सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी


इस बार पहेली में एक प्रतिभागी के रूप में शामिल होकर पहेली का आधा सही उत्तर देकर साहित्यिक अभिरुचि प्रदर्शित करने के कारण विशिस्ट विजेता बने हैं आदरणीय श्री दर्शन लाल जी बावेजा जी


आप सभी विजेता, उपविजेता तथा विशिस्ट विजेतागण को हार्दिक बधाई

सोमवार, 19 मार्च 2012

हिंदी साहित्य पहेली ७३ शेरों के रचयिता का नाम

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों

आज की पहेली में आपको निम्न चार पंक्तियां दी जा रही हैं जो किसी गजल के दो शेर हैं।

अपना ग़म लेके कही और न जाया जाए

घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए


अब तो मजहब कोई ऐसा चलाया जाए

जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए



आपको पता लगाना है कि ये चार पक्तियां किसी एक गजल के ही दो शेर हैं या दो अलग अलग गजलों के दो पृथक पृथक शेर है।
जब आप यह पहचान जायें कि ये एक ही गजल के शेर है या दो गजलों के तो तत्काल हमें बतायें कि इस शेरों के रचयिता कौन हैं ।
संकेत के रूप में यह बताना चाहेंगे कि इन शेरो के रचयिता हिन्दी साहित्य जगत की अमूल्य धरोहर है।

अब तक शायद आप पहचान गये होंगे तो फिर देर किस बात की, तुरंत अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।

हार्दिक शुभकामनाओं सहित।

मंगलवार, 13 मार्च 2012

हिंदी साहित्य पहेली 72 का परिणाम और पुनः पांच विजेता

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों

पहेली संख्या 71 में ‘ओम जय जगदीश की आरती ’के रचयिता का नाम पूछा गया था जो है पंडित श्रध्दाराम शर्मा जी ।

ओम जय जगदीश की आरती जैसे भावपूर्ण गीत के रचयिता थे पं. श्रध्दाराम शर्मा जी ।
इनका संक्षिप्त परिचय और कृतित्व इस प्रकार है-

( पं. श्रद्धाराम शर्मा या श्रद्धा राम फिल्‍लौरी ) (१८३७-२४ जून १८८१) पं. श्रद्धाराम शर्मा का जन्म पंजाब के जिले जालंधर में स्थित फिल्लौर शहर स्थान नगरोटा बगवाँ में हुआ था। उनके पिता जयदयालु खुद एक अच्छे ज्योतिषी थे। उन्होंने अपने बेटे का भविष्य पढ़ लिया था और भविष्यवाणी की थी कि यह एक अद्भुत बालक होगा। बालक श्रद्धाराम को बचपन से ही धार्मिक संस्कार विरासत में मिले थे। उन्होंने सात साल की उम्र तक गुरुमुखी में पढाई की। दस साल की उम्र में संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी तथा ज्योतिष की पढाई शुरु की और कुछ ही वर्षो में वे इन सभी विषयों के निष्णात हो गए। उनका विवाह सिख महिला महताब कौर के साथ हुआ था। २४ जून १८८१ को लाहौर में उनका देहावसान हुआ। वे सनातन धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। अपनी विलक्षण प्रतिभा और ओजस्वी वक्तृता के बल पर उन्होने पंजाब में नवीन सामाजिक चेतना एवं धार्मिक उत्साह जगाया जिससे आगे चलकर आर्य समाज के लिये पहले से निर्मित उर्वर भूमि मिली।
उन्होंने धार्मिक कथाओं और आख्यानों का उध्दरण देते हुए अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जनजागरण का ऐसा वातावरण तैयार कर दिया कि अंग्रेजी सरकार की नींद उड़ गई। वे महाभारत का उल्लेख करते हुए ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने का संदेश देते थे और लोगों में क्रांतिकारी विचार पैदा करते थे। १८६५ में ब्रिटिश सरकार ने उनको फुल्लौरी से निष्कासित कर दिया और आसपास के गाँवों तक में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। जबकि उनकी लिखी किताबें स्कूलों में पढ़ाई जाती रही। पं. श्रद्धाराम खुद ज्योतिष के अच्छे ज्ञाता थे और अमृतसर से लेकर लाहौर तक उनके चाहने वाले थे इसलिए इस निष्कासन का उन पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उनकी लोकप्रियता और बढ गई। लोग उनकी बातें सुनने को और उनसे मिलने को उत्सुक रहने लगे। इसी दौरान उन्होंने हिन्दी में ज्योतिष पर कई किताबें भी लिखी। लेकिन एक इसाई पादरी फादर न्यूटन जो पं. श्रध्दाराम के क्रांतिकारी विचारों से बेहद प्रभावित थे, के हस्तक्षेप पर अंग्रेज सरकार को थोड़े ही दिनों में उनके निष्कासन का आदेश वापस लेना पड़ा। पं. श्रध्दाराम ने पादरी के कहने पर बाईबिल के कुछ अंशों का गुरुमुखी में अनुवाद किया था। पं. श्रद्धाराम ने अपने व्याख्यानों से लोगों में अंग्रेज सरकार के खिलाफ क्रांति की मशाल ही नहीं जलाई बल्कि साक्षरता के लिए भी ज़बर्दस्त काम किया।
१८७० में उन्होंने प्रसिद्ध "ओम जय जगदीश" की आरती की रचना की। प. श्रद्धाराम की विद्वता, भारतीय धार्मिक विषयों पर उनकी वैज्ञानिक दृष्टि के लोग कायल हो गए थे। जगह-जगह पर उनको धार्मिक विषयों पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाता था और तब हजारों की संख्या में लोग उनको सुनने आते थे। वे लोगों के बीच जब भी जाते अपनी लिखी ओम जय जगदीश की आरती गाकर सुनाते। उनकी आरती सुनकर तो मानो लोग बेसुध से हो जाते थे। आरती के बोल लोगों की जुबान पर ऐसे चढ़े कि आज कई पीढियाँ गुजर जाने के बाद भी उनके शब्दों का जादू कायम है। ईसाई मत की ओर उन्मुख हो रहे कपूरथला नरेश रणधीर सिंह के संशय निवारण से इनका प्रभाव खूब बढ़ा।

और अब आते हैं परिणाम पर
इस बार पुनः सबसे पहले सही उत्तर भेजकर विजेता के पद पर विराजमान हुये हैं श्री यशवंत माथुर जी

और थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर आज के प्रथम उपविजेता पद पर विराजमान हुई हैं सुश्री साधना वैद्य जी


और थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर द्वितीय उपविजेता पद पर विराजमान हुई हैं सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी


और आज थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर तृतीय उपविजेता पद पर विराजमान हुए है श्री दर्शन लाल जी बावेजा जी


इस बार पहेली में भाग लेने की विशिस्ट खेल भावना के चलते इस बार के विशिस्ट विजेता बने हैं आदरणीय डा0 रूपचंद जी शास्त्री मयंक जी


सुश्री मीनाक्षी पन्त जी द्वारा भी प्रयास किया गया जिसके लिए वह बधाई की पात्रा है


आप सभी विजेता तथा उपविजेता गणों को हार्दिक बधाई

सोमवार, 12 मार्च 2012

हिंदी साहित्य पहेली 72 हजारों श्लोकों, स्तोत्रों और मंत्रों के निचोड़ के रचयिता का नाम

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों
आज की पहेली कुछ ऐसे शब्दों के बारे में है जो नकि हमारे देश के घर-घर और मंदिरों में सदियों से गूंज रहे हैं, बल्कि दुनिया के किसी भी कोने में बसे किसी भी सनातनी हिंदू परिवार में शायद ही केाई ऐसा व्यक्ति हो जिसके ह्रदय-पटल पर बचपन के संस्कारों में इन शब्दों की छाप न पड़ी हो। ये शब्द उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत के हर घर और मंदिर मे पूरी श्रध्दा और भक्ति के साथ गाए जाते हैं।

अब तक अब शायद आप पहचान गये हो इन शब्दों को । जी हां हम बात कर रहे हैं देश और दुनियाभर के करोड़ों हिन्दुओं के रग-रग में बसी ओम जय जगदीश की आरती की। हजारों साल पूर्व हुए हमारे ज्ञात-अज्ञात ऋषियों ने परमात्मा की प्रार्थना के लिए जो भी श्लोक और भक्ति गीत रचे, ओम जय जगदीश की आरती की भक्ति रस धारा ने उन सभी को अपने अंदर समाहित सा कर लिया है। यह एक आरती संस्कृत के हजारों श्लोकों, स्तोत्रों और मंत्रों का निचोड़ है।
(1)
ॐ जय जगदीश हरे
स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे,
ॐ जय जगदीश हरे

(2)
जो ध्यावे फल पावे,
दुख बिनसे मन का
स्वामी दुख बिनसे मन का
सुख सम्मति घर आवे,
सुख सम्मति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का
ॐ जय जगदीश हरे

(3)
मात पिता तुम मेरे,
शरण गहूं मैं किसकी
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी .
तुम बिन और न दूजा,
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी
ॐ जय जगदीश हरे

(4)
तुम पूरण परमात्मा,
तुम अंतरयामी
स्वामी तुम अंतरयामी
पारब्रह्म परमेश्वर,
पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी
ॐ जय जगदीश हरे

(5)
तुम करुणा के सागर,
तुम पालनकर्ता
स्वामी तुम पालनकर्ता,
मैं मूरख खल कामी
मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता
ॐ जय जगदीश हरे

(6)
तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति,
किस विध मिलूं दयामय,
किस विध मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति
ॐ जय जगदीश हरे

(7)
दीनबंधु दुखहर्ता,
ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी तुम मेरे
अपने हाथ उठाओ,
अपनी शरण लगाओ
द्वार पड़ा तेरे
ॐ जय जगदीश हरे
(8)
विषय विकार मिटाओ,
पाप हरो देवा,
स्वमी पाप हरो देवा,.
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
संतन की सेवा
ॐ जय जगदीश हरे


आपको इस आरती के रचयिता के नाम को पहचानना है ।

संकेत के रूप में बता दे कि इस आरती के आखिरी पंक्ति में आया शब्द ‘श्रद्धा भक्ति बढाओ’ में इसके रचयिता का नाम भी अपने अर्थ सहित इस आरती में इतनी गहराई से रच बस गया है कि उसे अलग से पहचानने के लिये सचमुच मशक्कत करनी पडती है

अब तक शायद आप पहचान गये होंगे तो फिर देर किस बात की, तुरंत अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।

हार्दिक शुभकामनाओं सहित।

मंगलवार, 6 मार्च 2012

हिंदी साहित्य पहेली 71 का परिणाम और विजेता पांच

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों

पहेली संख्या 71 में ‘हे प्रभो आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिये ’ गीत के रचयिता का नाम पूछा गया था जो है पंडित रामनरेश त्रिपाठी जी ।

हे प्रभो! आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।
लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें।
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रत-धारी बनें॥

प्रार्थना की उपर्युक्त चार पंक्तियाँ ही देश के कोने-कोने में गायी जाती हैं। लेकिन सच तो ये है कि माननीय त्रिपाठी जी ने इस प्रार्थना को छह पंक्तियों में लिखा था। जिसकी आगे की दो पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :

गत हमारी आयु हो प्रभु! लोक के उपकार में
हाथ डालें हम कभी क्यों भूलकर अपकार में

इनका संक्षिप्त परिचय और कृतित्व इस प्रकार है-

रामनरेश त्रिपाठी का जन्म उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर जिले के ग्राम कोयरीपुर में चार मार्च 1889 को एक कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता पं. रामदत्त त्रिपाठी परम धर्म व सदाचार परायण ब्राहमण थे।
पं.त्रिपाठी की प्रारम्भिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई। जूनियर कक्षा उत्तीर्ण कर हाईस्कूल वह निकटवर्ती जौनपुर जिले में पढने गए मगर वह हाईस्कूल की शिक्षा पूरी नहीं कर सके। अट्ठारह वर्ष की आयु में पिता से अनबन होने पर वह कलकत्ता चले गए।
भारतीय सेना में सूबेदार के पद पर रह चुके पंडित रामदत्त त्रिपाठी का रक्त पं.रामनरेश त्रिपाठी की रगों में धर्मनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा व राष्ट्रभक्ति की भावना के रूप में बहता था। दृढता, निर्भीकता और आत्मविश्वास के गुण उन्हें अपने परिवार से ही मिले थे।
पंडित त्रिपाठी में कविता के प्रति रुचि प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करते समय जाग्रत हुई थी। संक्रामक रोग हो जाने की वजह से वह कलकत्ता में भी अधिक समय तक नहीं रह सके। सौभाग्य से एक व्यक्ति की सलाह मानकर वह स्वास्थ्य सुधार के लिए जयपुर राज्य के सीकर ठिकाना स्थित फतेहपुर ग्राम में सेठ रामवल्लभ नेवरिया के पास चले गए।
यह एक संयोग ही था कि मरणासन्न स्थिति में वह अपने घर परिवार में न जाकर सुदूर अपरिचित स्थान राजपूताना के एक अजनबी परिवार में जा पहुंचे जहां शीघ्र ही इलाज व स्वास्थ्यप्रद जलवायु पाकर रोगमुक्त हो गए ।
पंडित त्रिपाठी ने सेठ रामवल्लभ के पुत्रों की शिक्षा-दीक्षा की जिम्मेदारी को कुशलतापूर्वक निभाया। इस दौरान उनकी लेखनी पर मां सरस्वती की मेहरबानी हुई और उन्होंने “हे प्रभो आनन्ददाता..” जैसी बेजोड़ रचना कर डाली जो आज भी अनेक स्कूलों में प्रार्थना के रूप में गाई जाती है।
फतेहपुर में पं.त्रिपाठी की साहित्य साधना की शुरुआत होने के बाद उन्होंने उन दिनों तमाम छोटे-बडे बालोपयोगी काव्य संग्रह, सामाजिक उपन्यास और हिन्दी महाभारत लिखे। उन्होंने हिन्दी तथा संस्कृत के सम्पूर्ण साहित्य का गहन अध्ययन किया।
वर्ष 1915 में पं. त्रिपाठी ज्ञान एवं अनुभव की संचित पूंजी लेकर पुण्यतीर्थ एवं ज्ञानतीर्थ प्रयाग गए और उसी क्षेत्र को उन्होंने अपनी कर्मस्थली बनाया। थोडी पूंजी से उन्होंने प्रकाशन का व्यवसाय भी आरम्भ किया। पंडित त्रिपाठी ने गद्य और पद्य का कोई कोना अछूता नहीं छोडा तथा मौलिकता के नियम को ध्यान में रखकर रचनाओं को अंजाम दिया। हिन्दी जगत में वह मार्गदर्शी साहित्यकार के रप में अवरित हुए और सारे देश में लोकप्रिय हो गए ।
उन्होंने वर्ष 1920 में 21 दिन में हिन्दी के प्रथम एवं सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रीय खण्डकाव्य “पथिक” की रचना की । इसके अतिरिक्त “मिलन” और “स्वप्न” भी उनके प्रसिद्ध मौलिक खण्डकाव्यों में शामिल हैं।
कविता कौमुदी के सात विशाल एवं अनुपम संग्रह-ग्रंथों का भी उन्होंने बडे परिश्रम से सम्पादन एवं प्रकाशन किया । इन्होंने कविता के अलावा उपन्यास, नाटक, आलोचना, हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास तथा बालोपयोगी पुस्तकें लिखीं और 'कविता कौमुदी (आठ भाग में), हिंदी, उर्दू, संस्कृत, बंगला की कविताएं तथा 'ग्राम्य गीत (कविता संकलन) संपादित और प्रकाशित किए। इनकी मुख्य काव्य-कृतियां हैं- 'मिलन, 'पथिक, 'स्वप्न तथा 'मानसी। 'स्वप्न पर इन्हें हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला। ये प्राक्छायावादी युग के महत्वपूर्ण कवि हैं जिन्होंने राष्ट्रप्रेम की कविताएं भी लिखीं।

पं. त्रिपाठी कलम के धनी ही नहीं बल्कि कर्मशूर भी थे । महात्मा गांधी के निर्देश पर वे हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रचार मंत्री के रूप में हिन्दी जगत के दूत बनकर दक्षिण भारत गए थे। वह पक्के गांधीवादी देशभक्त और राष्ट्र सेवक थे। स्वाधीनता संग्राम और किसान आन्दोलनों में भाग लेकर वह जेल भी गए।
पं. त्रिपाठी को अपने जीवन काल में कोई राजकीय सम्मान तो नही मिला पर उससे भी कही ज्यादा गौरवप्रद लोक सम्मान तथा अक्षय यश उन पर अवश्य बरसा। उन्होंने 16 जनवरी 1962 को अपने कर्मक्षेत्र प्रयाग में ही अंतिम सांस ली।
पंडित त्रिपाठी के निधन के बाद आज उनके गृह जनपद सुलतानपुर में एक मात्र सभागार स्थापित है जो उनकी स्मृतियों को ताजा करता है।

और अब आते हैं परिणाम पर

इस बार पुनः सबसे पहले सही उत्तर भेजकर विजेता के पद पर विराजमान हुये हैं श्री यशवंत माथुर जी

और थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर आज के प्रथम उपविजेता पद पर विराजमान हुये हैं आदरणीय डा0 रूपचंद जी शास्त्री मयंक जी

और आज के प्रथम और थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर द्वितीय उपविजेता पद पर विराजमान हुई हैं सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी


और आज थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर तृतीय उपविजेता पद पर विराजमान हुए है श्री राणा प्रताप सिंह जी


इस बार पहेली में भाग लेने की विशिस्ट खेल भावना के चलते इस बार की विशिस्ट विजेता बनी हैं सुश्री साधना वैद्य जी


आप सभी विजेता तथा उपविजेता गणों को हार्दिक बधाई

अगली पहेली तक के लिये आप सबको नमस्कार और हार्दिक शुभकामनाऐं।

सोमवार, 5 मार्च 2012

हिंदी साहित्य पहेली 71 अमर गीत के रचयिता का नाम

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों
आज की पहेली भारतवर्ष के हिन्दी प्रदेशों के प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा आरंभ होने से पूर्व की जाने वाली प्रार्थना से जुडी है । अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों को छोडकर लगभग सभी विद्यालयों में शिक्षण कार्य का आरंभ इस प्रेरणादयी गीत के साथ ही होता है । यह प्रेरणादायी गीत हैः-

हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये

शीष्र सारे दूर्गुणों को दूर हमसे कीजिये

लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें।
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रत-धारी बनें॥


ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीरव्रत धारी बने


आज की पहेली में आपको इस अमर गीत के रचयिता का नाम बताना है।
पहले संकेत के रूप में बतादे कि इस गीत के रचयिता के पिता पंडित रामदत्त त्रिपाठी भारतीय सेना में सूवेदार के रूप में कार्यरत थे।

एक और संकेत के रूप में अवगत करा दे कि इन्होंने कविता के अलावा उपन्यास नाटक आलोचना तथा हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास भी लिखा है।

अंतिम संकेत यह है कि इसके रचयिता का जन्म उत्तर प्रदेश के जनपद सुल्तानपुर में हुआ था।

बस अब तक शायद आप पहचान गये होंगे इस महाकवि पंडित को बीते कल 4 मार्च को जिनका जन्म दिवस था (अरे नहीं एक और संकेत) तो फिर देर किस बात की, तुरंत अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।

हार्दिक शुभकामनाओं सहित।