आज की पहेली में आपको हिन्दी साहित्य के उस नाम को पहचानना है जिसका जन्म 14 दिसम्बर 2011 से ठीक 101 वर्ष पूर्व हुआ था और जिसका क्षेत्र अध्ययन, पत्रकारिता, वकालत, रेडियो, फिल्म, रंगमंच और प्रकाशन का रहा।
आम भारतीय नागरिक उनकर रचनाओं में प्रमुख पात्र रहे । उनकी एक लोकप्रिय कहानी ‘बैंगन का पौधा’ में एक आम भारतीय व्यवस्था का सटीक निरूपण है जिसमें एक सरकारी अफसर के बंगले के आहाते में लगी सब्जियों को ठेके पर उठाने के लिये नियुक्त ठेकेदार द्वारा बगीचे की रखवाली के लिये एक अधेड को चौकीदार रखा गया है और के अंततः एक सुबह वह बूढा चौकीदार उस सरकारी अफसर के बारामदे में ही सब्जियेां को बचाते बचाते ठंड से अकडकर मर जाता है।
देखें इस कहानी में उन्होंने जीवन का मनोविज्ञान कितने सरल शब्दों में लिखा हैः-
‘‘उस बूढे को मैने देखा था। सुबह ही देखा था। वह बैंगन के पौधे छांट रहा था और डाइनिंग हाल से घर को आते हुये मैने उससे पूछा भी था कि वाह ऐसा क्यों कर रहा है। उसने बताया था कि बैंगन का पौधा दो बार फल देता है। एक बार छांट दिया जाय ता और भी बढता फूलता है। मैने उसे सूखे पल्लव हीन बैंगन के पौधों पर निगाह दोडाई थीं । एक पौणे पर एक सूखा सिकुडा मुरझााया पीला बैंगन लटक रहा था वहां से हटकर मेरी दृष्टि उस बूडे पर गयी उसकी उमर न जाने कितनी थी किन्तु वह बेहद बूडा दिखलाई दिया था। यद्यपि सर्दी से बचने के लिये उसके पास खेसी थी तो भी उसके लकडी से पतले पीले हाथ बांस सी पतली टांगे सूखा पिचका चेहरा आंखों के गढे साफ दिखाई देते थे । तब एक अजीब सा खयाल मेरे मन में दौड गया थाः बैगन का पौधाा जब सूख जाता है तो छांटने पर ओर भी ज्यादा बढते हैं। मानव को उस अदृष्य सृष्टा ने ऐसा क्यों नही बनाया? किन्तु तभी अन्तर में किसी ने कहा कि मानव की बेलि भी तो अमर है- पुरूष -स्त्रियां , बच्चे- बूडे, इसके फल- फूल ,पत्ते और शाखायें हैं। मृत्यु इसकी कैंची है। जब वे सड-सूख जाते हैं तो वह कैंची उन्हें काट देती है ओर उनके स्थान पर नित नूतन, हरे- भरे, जीवन के उल्लास से किलकारियां मारते, हंसते, नाचते, गाते हुये पत्ते, फूल, फल लगने लग जाते हैं।’’
हिन्दी का यह महान लेखक अपने पूर्णकालिक नाटक के स्थान पर अपने ऐकांकी के लेखक के रूप में ज्यादा लोकप्रिय हुये।
अब इतने संकेत एक साथ पाने के बाद आप पहचान ही गये होंगे इस महान हिंदी व्यंग्यकार को।
अरे नहीं एक और संकेत! अब तो देर न कीजिये और अपना उत्तर तुरंत भेजिये ।
कहीं कोई और प्रतिभागी आपसे पहले उत्तर भेजकर इस पहेली का विजेता न बन जाय।
शुभकामनाओं सहित।
श्री उपेन्द्रनाथ अश्क
जवाब देंहटाएंइस महान लेखक का नाम है 'श्री उपेन्द्रनाथ अश्क' !
जवाब देंहटाएंउपेन्द्र नाथ अश्क (१९१०- १९ जनवरी १९९६) हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार व उपन्यासकार थे। 'अश्क' का जन्म जालन्धर, पंजाब में हुआ। जालन्धर में प्रारम्भिक शिक्षा लेते समय ११ वर्ष की आयु से ही वे पंजाबी में तुकबंदियाँ करने लगे थे। कला स्नातक होने के बाद उन्होंने अध्यापन का कार्य शुरू किया तथा विधि की परीक्षा विशेष योग्यता के साथ पास की। अश्क जी ने अपना साहित्यिक जीवन उर्दू लेखक के रूप में शुरू किया था किन्तु बाद में वे हिन्दी के लेखक के रूप में ही जाने गए। १९३२ में मुंशी प्रेमचन्द्र की सलाह पर उन्होंने हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। १९३३ में उनका दूसरा कहानी संग्रह 'औरत की फितरत' प्रकाशित हुआ जिसकी भूमिका मुंशी प्रेमचन्द ने लिखी।
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