सोमवार, 15 अगस्त 2011

हिंदी साहित्य पहेली 39

प्रिय चिट्ठाकारों
पिछले तीन सप्ताहों मे हिंदी साहित्य पहेली के अंतरगत पूछे गये सवालों के सही जवाब देकर हैट्रिक लगाने की एवज में आदरणीय शालिनी जी के द्वारा मुझे भी इस साहित्य पहेली में योगदान कर्ता के रूप में सम्मिलित कर लिया गया है। इसका पहला सीधा सा अर्थ तो यह है कि अब मै कभी इस हिंदी साहित्य पहेली में विजेता बनकर उनसे मेडल और गुलाब के फूल नहीं पा सकूँगा जिसका मुझे मलाल रहेगा परन्तु इसका दूसरा अर्थ अधिक गंभीर है वह यह कि अब मुझे एक निर्णायक की भूमिका का निर्वहन भी करना होगा जो अनेक अवसरों पर दुरूह हो सकता है अतः मै इस अनुरोघ के साथ हिंदी साहित्य पहेली 39 में यह कडी जोड रहा हूँ कि इसके परिणामों की घोषणा संस्थापक योगदानकर्ताओं द्वारा ही की जायेगी। संस्थापक योगदानकर्ताओं शालिनी जी तथा शिखा जी से स्नेह और सहयोग की आशा के साथ आप सभी सुधी पाठक बंधुओं का आशीष भी चाहूँगा। अभी हाल ही में भाई बहिन के प्रेम के प्रतीक पर्व रक्षाबंधन बीता है सो इस सप्ताह की पहेली पूछने से पहले रक्षाबंधन के अवसर पर भाई बहिन के प्रेम की अनोखी मिसाल से परिचय करवाना चाहता हूँ जो इस प्रकार हैः-

बहन की इस स्थिति के लिये स्वयं को ही उत्तरदायी मानते हुये स्वयं भी गेरूवे वस्त्र पहन लिये

यह घटना है वर्तमान पाकिस्तान और तब के हिन्दुस्तानी प्रांत पंजाब के गुजरांवाला क्षेत्र की जहाँ एक साहूकार परिवार रहता था । इस परिवार में चार बच्चे थे तीन भाई थे और एक बहन सबसे छोटे बच्चे का नाम था ‘नंद’ और उसकी बडी बहिन जिसका नाम था ‘हाको’, हाको और नंद के तीन भाइयों में से दो मर गये । बालक ‘नंद’ जब छह महीने का था तब उसकी माँ साथ छोडकर चली गयी। उसकी नानी ने उस बालक को अपनी गोद में डाल लिया और साधुओ के एक डेरे में माथा टेकने आने वाली एक औरत के दूध पर पाल लिया।

समय के साथ साथ नंद उसका बड़ा भाई तथा बहिन सयाने हुये लेकिन दुर्भाग्य ने यहाँ भी उसका पीछा नहीं छोडा और उनका भाई गोपाल सिंह घर गृहस्थी छोडकर शराबी हो गया। अब ‘नंद’ का सारा स्नेह अपनी बहन ‘हाको’ के प्रति हो गया। बहन बड़ी थी, बेहद खूबसूरत थी । जब उसका ब्याह हुआ तो अपने पति बेताल सिंह को देखकर वह ठगी सी रह गयी । उस बेहद खूबसूरत लडकी का पति बेताल सिंह बेहद कुरूप था। अंततः उस बालिका ने यह जिद पकड़ ली कि वह बेताल सिंह से कोई संबंध नहीं रखेगी। गौने में ससुराल जाने की जगह उसने अपने मायके में एक तहखाना खुदवा लिया और अपने चारों ओर एक अनदेखी दीवार खिंचवा ली । पंजाब के शब्दों में कहे तो अपने चारों ओर ‘चालीसा खींच लिया’ और गेरूआ बाना धारण कर वैराग्य की राह पकड़ ली। वह रात को कच्चे चने पानी में भिगो देती और दिन में खा लेती । नंद की बहिन ‘हाको’ ने अपने मामा मामी से कहकर अमृतसर में कहीं नंद की सगाई कर दी परन्तु नंद ने वह सगाई छोड दी और बैरागी होकर कवितायें लिखने लगा। वास्तव में अपनी बहिन को इस हालत में देखकर ‘नंद’ ने बहन की इस स्थिति के लिये स्वयं को ही उत्तरदायी मानते हुये स्वयं भी गेरूवे वस्त्र पहन लिये।
पर हाय रे दुर्भाग्य नंद की बहन बहुत दिन जीवित नहीं रही उसकी मृत्यु के बाद ‘नंद’ को लगा कि संसार से सच्चा वैराग्य उस अब हुआ हैं। अपने साहूकार नाना सरदार अमर सिंह सचदेव से मिली हुयी भारी जायजाद को त्याग कर वह गुजरांवाला के संत दयाल जी के डेरे में जा बैठा। यहाँ पहुँचकर संस्कृत सीखी, ब्रजभाषा सीखी, हिकमत सीखी और इस डेरे में ‘बालका साधु’ कहलाने लगा। संत दयाल जी के डेरे पर अनेक श्रद्धालुजन आया करते थे उन्ही में से एक थी गांव मांगा की राज बीबी। राज बीबी का जिससे ब्याह हुआ वह अचानक गायब हुआ फिर कभी उसकी कोई खबर नहीं आयी। उसकी भाभी भी विधवा थी दोनो अकेली थीं सो साथ साथ रहने लगी थीं। राज बीवी वहीं के एक छोटे से स्कूल में पढाने लगी । अपने स्कूली बच्चों के साथ दयाल जी के डेरे में माथा टेकने आती थी ।
दयालजी बालका साधु से उनकी कविताएँ सुना करते थे। एक दिन दयालजी ने बालका साधु से सारे भक्तो को कविता सुनाने के लिये कहा और आँखें बंद कर तन्मयता से कविता सुनने लगे। जब दयाल जी ने आँखे खोली तो देखा कि बालका साधु की आंखे राज बीबी की तरफ भटक रही हैं । उन्होंने राजबीबी की ब्यथा पहले से ही सुन रखी थी सो नंद केा बुलाकर उससे कहा:-‘नंद बेटा यह....संन्यास... आश्रम....तेरे लिये नहीं है। यह भगवे वस्त्र त्याग दो और जाकर गृहस्थ आश्रम में कदम रखो।’
बालका साधु ने दयाल जी का आदेश मानकर जब गृहस्थ आश्रम स्वीकार कर लिया और अपना नया नाम करतार सिंह रख लिया। वे कविता लिखते थे सो एक उपनाम भी रख लिया पीयूष! यही राज बीबी और नंद साधु पंजाबी भाषा की महान लेखिका के माता बने ।
अब आपको बताना है वह मशहूर लेखिका कौन थी?
संकेत के रूप में बता दे कि इसका उत्तर शिखा जी के ब्लाग भारतीय नारी की ही पोस्टो में मिल जायेगा।

7 टिप्‍पणियां:

  1. ashok ji paheli ka uttar sanket dekar aapne sabhi ka kam aasan kar diya hai .aabhar

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  2. स्वतन्त्रता दिवस के पावन अवसर पर बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  3. ashok ji ,
    aapki prastuti kee sarahna karna to suraj ko diya dikhane jaisa hoga .aapka is blog par hardik swagat hai.aabhar

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  4. आपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/

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  5. Abhi tak koi hal nahi aaya hai isliye eak aur
    sanket de raha hu. Nand ji ne aapani beti ka
    naam aapne upnaam 'piyush' ka hindi anuwaad
    karte huye rakh diya. Ab to guess kariye!

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  6. Aaj eak aur sanket.
    Us panjaabi lekhika ka 'preetam' koi
    sahir naqm ka shayar tha.
    Ab. To guess karna hi hoga
    jaldi se hal bheje. goodluck

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