सोमवार, 19 सितंबर 2011

हिन्दी साहित्य पहेली 47 श्री धर्मवीर भारती से पूछा जाने लगा कि आखिर इसका लेखक कौन है?-

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,
आज की पहेली हिन्दी साहित्य की एक महान हस्ती पर आधारित है । सामने बना हुआ चित्र उस महान साहित्यकार के द्वारा लिखित एक उपन्यास का मुखपृष्ठ है। यह अपराधिक पृष्ठभूमि पर लिखा एक उपन्यास है जो इस धारणा का खंडन करता है कि अपराध कथाऐं साहित्यिक नहीं हो सकती। इस चित्र में से प्रकाशक का नाम तो यथावत है परन्तु लेखक का नाम और उपन्यास के शीर्षक को हटा दिया गया है जिसे आपको पहचानना है।


आपकी सहायता के लिये पहला संकेत है कि हिन्दी साहित्य की इस महान हस्ती का जन्म लखनऊ जिले के एक कस्बे अतरौली में हुआ। वह कस्बा भौगोलिक रूप से तो जनपद लखनऊ का हिस्सा था परन्तु वास्तव में जनपद सीतापुर और हरदोई की सांझी संस्कृति के कस्बे के रूप में जाना जाता रहा है। इसी कस्बे में पुश्तैनी तौर पर छोटे खेतिहरों के परिवार में इस महान हिंदी लेखक का जन्म हुआ था। इनके पितामह संस्कृत उर्दू और फारसी के ज्ञानी थे तथ पास के ही विद्यालय में अध्यापकी करते थे। कुछ समय बाद नौकरी से इस्तीफा देकर एक किसान भर रह गये थे। इनके पिता संगीत के शौकीन थे और पितामह द्वारा एकत्र की गयी खेेती से जीवन यापन करते हुये 1946 में स्वर्ग सिधार गये ।

पिता की मृत्यु के उपरांत 1947 में वे अपनी आगे की पढाई के लिये लखनऊ विश्वविद्यालय आ गये और 1948 में एम0 ए0 करने के उपरांत यहीं कानून की कक्षा में प्रवेश लिया। इसी दौरान उनका विवाह हो गया और कानून की पढाई आगे जारी न रह सकी। पत्नी के रूप में उन्हे जो सुशील कन्या मिली यह उसकी ही सद्प्रेरणा का प्रभाव था कि वर्ष 1949 में उत्तर प्रदेश की प्रतिष्ठित सिविल सेवा में उनका चयन हो गया । इनके सक्रिय लेखन की शुरूआत के संबंध मे उन्होंने स्वयं अपने एक अंगेजी लेख में इस प्रकार लिखा हैः-
‘‘ ----अगर किशोरावस्था के अनाचार शुमार न किये जायें तो साहित्य में मेरे प्रयोग 26 साल की काफी परिपक्व अवस्था से शुरू हुए।(सिविल सर्वेन्ट की हैसियत से मेरा कैरियर पहले ही शुरू हो गया था) यह सन्1953-54 की बात है। उस समय मै बुन्देलखण्ड के राठ नामक परम अविकसित क्षेत्र में एक डाक बंगले में रहता था और ऐक बैटरी वाल रेडियो , दो राइफले , एक बन्दूक, एक खचडा आस्टिन, मुट्ठी भर किताबें ( ज्यादातर रिप्रिंट सोसाइटी के प्रकाशन) एकाध पत्रिकायें, कभी शिकवा न करने वाली बीबी और दो बहुत छोटे बच्चे, जिन्होंने स्थानीय बोली के सौंदर्य के प्रति उन्मुख होना भर शुरू किया था, यही मेरे सुख के साधन थे।
एक दिन आकाशवाणी के एक नाटका का रोमांटिक धुआंधार ( जो आकाशवाणीके नाटकों आदि में हमेशा बलबलाता रहता है) झेलने में अपने को बेकाबू पाकर और लगभग हिंसात्मक विद्रोह करते हुये मैने ‘स्वर्णग्राम और वर्षा ’ नामक लेख लिखा और उसे धर्मवीर भारती को भेज दिया। आकाशवाणी क उस वर्षा सम्बन्धी नाटक पर मेरी यह प्रतिक्रिया रडियो सेट उठाकर पटक देने के मुकाबले कम हानिकर थी । बहरहाल वह लेख छपा ‘निकष’ में, जो तत्कालीन हिंदी लेखन में एक विश्ष स्तर की प्रतिभा के साथ उसी स्तर की स्नाबरी से जुडकर निकलने वाला एक नियतकालीन संकलन था उसके बाद ही भारती से कई जगह से पूछा जाने लगा कि आखिर इसका लेखक कौन है?-----’’
1983 में अधिवर्षता पर राजकीय सेवा से सेवानिवृति के उपरांत वे लखनऊ में रहकर अनवरत साहित्य साधना कर रहे हैं।
आपकी सहायता के लिये दूसरा संकेत है इस उपन्यास की विषय वस्तु की तुलना के रूप में प्रस्तुत है। धर्मवीर भारती के लोकप्रिय उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ का नायक शोध-छात्र चन्दर जहां अपने आदर्शों को जीता हुआ सुधा के प्रति निष्छल प्रेम को अपनी ताकत समझता है और कहता है कि वह कभी गिर नहीं सकता जब तक सुधा उसकी आत्मा में गुंथी हुयी है वहीं इस उपन्यास की पात्रा शोध-छात्रा चांद अपने सहपाठी शोध-छात्र मुकर्जी के प्रेम को सिरे से नकारती हुयी अपने पिता की कैद के जिम्मेदार अधेड विमल के प्रति पारिवारिक विद्रोह की सीमा तक आसक्त होती जाती है। अपराध कथा के प्रभाव वाली यह कथा कृति एक ऐसे जीवन की कथा है जो पाठक को सहज अवरोह के साथ अंततः मानवीय नियति की गहराइयों में उतार देती है। इसी के पात्र विमल के शब्दों में:-
‘‘-- मैं जानता हूं कि रेगिस्तानी हरियाली पर इस तरह खुलकर हमला नहीं करता वह चुपके से अंधेरे में बढता है और जहॉ कुछ दिन पहले फूल खिले थे, वहॉ बालू रह जाती है। उपरी हरियाली का क्या भरोसा? क्या पता कि उसके आस-पास जमीन की अंदरूनी पर्तों में किधर से रेगिस्तान बढता चला आ रहा है---’’

अब बहुत हो गया। लेखक और उपन्यास के संबंध मे सब कुछ तो बता दिया है। अब तक तो आप पहचान ही गये होंगें इस लेखक को और उसकी रचना को ! फिर देर किस बात की जल्दी से अपना उत्तर भेजिये कहीं कोई और आपसे पहले उत्तर भेजकर विजेता न बन जाय।

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