सोमवार, 12 दिसंबर 2011

हिन्दी साहित्य पहेली 59 रचनाकार को पहचानो

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों
आज की साहित्य पहेली में आपको नीचे अंकित पंक्तियों के आधार पर उसके महान रचनाकार को पहचानना है । एक महान रचनाकार का यह गीत एक ऐसी यात्रा का कल्पना संसार है जो निश्छल प्रेम कथा के देश तक पहुंचती हैं। यह एक नए संसार की रचना का आह्वान गीत है, एक ऐसा संसार जहां जीवन कोई गहरा अर्थ पा सके। इसे ही प्रसाद ‘अमर जागरण’ कहा करते थे।
इस गीत की पंक्तियों में एक युग के भारतीय हृदय और मन की गहरी छाप बसी है।
इसके रचनाकार के एक नये ही व्यक्तित्व और जीवन का अस्फुट स्वप्न इन शब्दों में जाग उठा है।

ले चल वहाँ भुलावा देकर
मेरे नाविक ! धीरे-धीरे ।
जिस निर्जन में सागर लहरी,
अम्बर के कानों में गहरी,
निश्छल प्रेम-कथा कहती हो-
तज कोलाहल की अवनी रे ।
जहाँ साँझ-सी जीवन-छाया,
ढीली अपनी कोमल काया,
नील नयन से ढुलकाती हो-
ताराओं की पाँति घनी रे ।

जिस गम्भीर मधुर छाया में,
विश्व चित्र-पट चल माया में,
विभुता विभु-सी पड़े दिखाई-
दुख-सुख बाली सत्य बनी रे ।
श्रम-विश्राम क्षितिज-वेला से
जहाँ सृजन करते मेला से,
अमर जागरण उषा नयन से-
बिखराती हो ज्योति घनी रे !

उक्त पंक्तियों को पढने के बाद शायद आपको इस पहेली का उत्तर देने के लिये किसी संकेत की आवश्यकता ही न हो परन्तु हम इस पहेली का संकेत गीत के पहले लिखी गयी इसकी प्रस्तावना में पहले ही बता चुके हैं।
है ना बहुत आसान सा कार्य । तो फिर देर किस बात की क्या आप पहचान गये हैं उस छाया वादी प्रगतिशील कवि को (ओह नो.... फिर एक संकेत.....) तो फिर अब देरी किस बात की जल्दी से जल्दी अपना उत्तर भेजें ताकि आपसे पहले उत्तर भेजकर कोई और इसका पहेली का विजेता न बन जाय।
हार्दिक शुभकामनाओं सहित।

3 टिप्‍पणियां:

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