मंगलवार, 13 मार्च 2012

हिंदी साहित्य पहेली 72 का परिणाम और पुनः पांच विजेता

प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों

पहेली संख्या 71 में ‘ओम जय जगदीश की आरती ’के रचयिता का नाम पूछा गया था जो है पंडित श्रध्दाराम शर्मा जी ।

ओम जय जगदीश की आरती जैसे भावपूर्ण गीत के रचयिता थे पं. श्रध्दाराम शर्मा जी ।
इनका संक्षिप्त परिचय और कृतित्व इस प्रकार है-

( पं. श्रद्धाराम शर्मा या श्रद्धा राम फिल्‍लौरी ) (१८३७-२४ जून १८८१) पं. श्रद्धाराम शर्मा का जन्म पंजाब के जिले जालंधर में स्थित फिल्लौर शहर स्थान नगरोटा बगवाँ में हुआ था। उनके पिता जयदयालु खुद एक अच्छे ज्योतिषी थे। उन्होंने अपने बेटे का भविष्य पढ़ लिया था और भविष्यवाणी की थी कि यह एक अद्भुत बालक होगा। बालक श्रद्धाराम को बचपन से ही धार्मिक संस्कार विरासत में मिले थे। उन्होंने सात साल की उम्र तक गुरुमुखी में पढाई की। दस साल की उम्र में संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी तथा ज्योतिष की पढाई शुरु की और कुछ ही वर्षो में वे इन सभी विषयों के निष्णात हो गए। उनका विवाह सिख महिला महताब कौर के साथ हुआ था। २४ जून १८८१ को लाहौर में उनका देहावसान हुआ। वे सनातन धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। अपनी विलक्षण प्रतिभा और ओजस्वी वक्तृता के बल पर उन्होने पंजाब में नवीन सामाजिक चेतना एवं धार्मिक उत्साह जगाया जिससे आगे चलकर आर्य समाज के लिये पहले से निर्मित उर्वर भूमि मिली।
उन्होंने धार्मिक कथाओं और आख्यानों का उध्दरण देते हुए अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जनजागरण का ऐसा वातावरण तैयार कर दिया कि अंग्रेजी सरकार की नींद उड़ गई। वे महाभारत का उल्लेख करते हुए ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने का संदेश देते थे और लोगों में क्रांतिकारी विचार पैदा करते थे। १८६५ में ब्रिटिश सरकार ने उनको फुल्लौरी से निष्कासित कर दिया और आसपास के गाँवों तक में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। जबकि उनकी लिखी किताबें स्कूलों में पढ़ाई जाती रही। पं. श्रद्धाराम खुद ज्योतिष के अच्छे ज्ञाता थे और अमृतसर से लेकर लाहौर तक उनके चाहने वाले थे इसलिए इस निष्कासन का उन पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उनकी लोकप्रियता और बढ गई। लोग उनकी बातें सुनने को और उनसे मिलने को उत्सुक रहने लगे। इसी दौरान उन्होंने हिन्दी में ज्योतिष पर कई किताबें भी लिखी। लेकिन एक इसाई पादरी फादर न्यूटन जो पं. श्रध्दाराम के क्रांतिकारी विचारों से बेहद प्रभावित थे, के हस्तक्षेप पर अंग्रेज सरकार को थोड़े ही दिनों में उनके निष्कासन का आदेश वापस लेना पड़ा। पं. श्रध्दाराम ने पादरी के कहने पर बाईबिल के कुछ अंशों का गुरुमुखी में अनुवाद किया था। पं. श्रद्धाराम ने अपने व्याख्यानों से लोगों में अंग्रेज सरकार के खिलाफ क्रांति की मशाल ही नहीं जलाई बल्कि साक्षरता के लिए भी ज़बर्दस्त काम किया।
१८७० में उन्होंने प्रसिद्ध "ओम जय जगदीश" की आरती की रचना की। प. श्रद्धाराम की विद्वता, भारतीय धार्मिक विषयों पर उनकी वैज्ञानिक दृष्टि के लोग कायल हो गए थे। जगह-जगह पर उनको धार्मिक विषयों पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाता था और तब हजारों की संख्या में लोग उनको सुनने आते थे। वे लोगों के बीच जब भी जाते अपनी लिखी ओम जय जगदीश की आरती गाकर सुनाते। उनकी आरती सुनकर तो मानो लोग बेसुध से हो जाते थे। आरती के बोल लोगों की जुबान पर ऐसे चढ़े कि आज कई पीढियाँ गुजर जाने के बाद भी उनके शब्दों का जादू कायम है। ईसाई मत की ओर उन्मुख हो रहे कपूरथला नरेश रणधीर सिंह के संशय निवारण से इनका प्रभाव खूब बढ़ा।

और अब आते हैं परिणाम पर
इस बार पुनः सबसे पहले सही उत्तर भेजकर विजेता के पद पर विराजमान हुये हैं श्री यशवंत माथुर जी

और थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर आज के प्रथम उपविजेता पद पर विराजमान हुई हैं सुश्री साधना वैद्य जी


और थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर द्वितीय उपविजेता पद पर विराजमान हुई हैं सुश्री ऋता शेखर ‘मधु’ जी


और आज थोडे से बिलम्ब के साथ सही उत्तर देकर तृतीय उपविजेता पद पर विराजमान हुए है श्री दर्शन लाल जी बावेजा जी


इस बार पहेली में भाग लेने की विशिस्ट खेल भावना के चलते इस बार के विशिस्ट विजेता बने हैं आदरणीय डा0 रूपचंद जी शास्त्री मयंक जी


सुश्री मीनाक्षी पन्त जी द्वारा भी प्रयास किया गया जिसके लिए वह बधाई की पात्रा है


आप सभी विजेता तथा उपविजेता गणों को हार्दिक बधाई

5 टिप्‍पणियां:

  1. sabhi vijetaon ko hamari aur se bhi bahut bahut shubhkamnayen.sath hi ashok ji aapki mehnat bhi kabil-e-tareef hai.isliye sabhi ke sath aapko bhi ek bar firse hardik shubhkamnayen.

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  2. संपादक मण्डल को धन्यवाद!

    आ साधना आंटी,दर्शन सर,ऋता जी,शास्त्री सर एवं मीनाक्षी जी को भी हार्दिक शुभकामनाएँ।

    सादर

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  3. sabhi vjetaon ko hardik shubhkamnayen .ashok ji ko hardik dhanyvad

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